मंगलवार, 12 जनवरी 2021

दांव चल खुद का आंकलन करते हरदा

 ढोल पीटकर या मजमा लगाकर नही होती नेतृत्व की दावेदारी

दांव चल खुद का आंकलन करते हरदा



प0नि0ब्यूरो

देहरादून। कांग्रेसियों में अंदरखाने कहा जाता है कि जब तक हरदा दांव चलते रहेंगे, कांग्रेस का बंटाधर होता रहेगा। हालांकि बहुत से यह भी मानते है कि धरातली नेता यदि कांग्रेस में है तो वह हरदा ही है। 

एक बार फिर प्रदेश में चुनाव की आहट के साथ हरदा ने अपनी ही पार्टी में बगावती राग छेड़ दिया है। उनके राग को फिलहाल सुझाव के तौर पर पेश किया जा रहा है। लेकिन एक तरह से यह उनकी अपने आलाकमान को चुनौती ही कही जायेगी। वैसे भी वे वर्तमान के कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष को वह सम्मान नही देते जो उन्हें बतौर प्रदेशाध्यक्ष मिलना चाहिये। 

यहां पर हरदा भूल गए कि वे पिछली बार मुख्यमंत्री रहते हुए दो-दो सीटों से हार गए थे। केवल ढ़ोल पीटकर या मजमा लगाकर नेतृत्व का अवसर नहीं मिला करता। कई बार तो ऐसा लगता है कि हरदा अपनी ही पार्टी के कद्दावर नेताओं को उकसाते है जिससे वे कांग्रेस छोड़कर भाजपा में चले जायें ताकि पार्टी में उनका वचर्स्व निष्कण्टक हो सके। अब भी यही हो रहा है लेकिन इंदिरा हृदयेश के आगे उनकी दाल नहीं गल पायेगी। ऐसा हृदयेश ने अपने बयानों के माध्यम से भी साबित किया है। 

दरअसल हरदा ने प्रदेश के मुखिया रहते कांग्रेस के पार्टी संगठन को ध्वस्त करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी थी। यह तो प्रीतम सिंह की कर्मठता है कि ऐसी कठिन परिस्थिति में भी कांग्रेस को लीड कर रहें है। जबकि उनकी छवि कभी भी प्रदेश स्तर के नेता की नहीं रही। उसके बावजूद कांग्रेस के वजूद को बरकरार रखने वे कामयाब रहे। भले ही बीच-बीच में हरदा की तरह से रायता फैलाने की भी तमाम कोशिशें हुई। 

अपनी आदत के अनुसार हरदा एक बार फिर कांग्रेस में रायता फैलाने का प्रयास कर रहें है। संभवतया उन्हें मुगालता है कि आलाकमान उन्हें आगे कर देगी। हरदा की यह बेकरारी कहीं उन्हें महंगी न पड़ जाये। राजनीतिक विश्लेषक मान रहेें है कि हरदा दांव चलकर दरअसल अपनी ताकत का आंकलन कर रहें है। यदि पासा मनमाफिक पड़ा तो अड़ जायेंगे वरना अपने ही लोगों को नुकसान पहुंचाने का प्रयास करने में जुट जायेंगे। उन्हें यह तो याद है कि उम्र में इस पड़ाव में उन्हें ही मौका मिलना चाहिये। लेकिन वे भूल जाते है कि उनके पीछे भी कई पांतें है जिन्हें सूरत की किरणें देखने की अभिलाषा रहती है। 

लेकिन कई पुराने कांग्रेसी इस बात की तस्दीक करते है कि हरदा कभी अपनों पर विश्वास नहीं करते। कई बार तो खुद पर भी उनका यकीन नहीं रहता है। क्योंकि उन्हें तो अपने लोगों को लालीपाप देने की आदत है। वहीं पार्टी कार्यकर्ताओं को उन्होंने चाइना के माल की तरह यूज किया और फैंक दिया। इतना जरूर है कि जो उनके दरबार में बार बार चक्कर लगायेगा, उसके हाथ अवश्य ही खुरचन लग जायेगी। आज के दौर पर इतना सब्र किसके पास है। इसलिए गुजरते वक्त के साथ साथ हरदा के आसपास मंडराने वाली भीड़ भी कम होती जा रही है। हालांकि वे उम्मीद का दीया जलाकर पतंगों को अपनी ओर खींचने का प्रयास जरूर करते रहते है। 


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