रविवार, 24 जनवरी 2021

ज्यादा काम तनख्वाह कम

ज्यादा काम तनख्वाह कम



अंतहीन समस्याओं से दो चार होती देश की नर्से

प0नि0ब्यूरो

देहरादून। देश में वैश्विक महामारी कोविड-19 के दौरान एक ओर सरकार के कहने पर स्वास्थ्य संबंधी देखभाल करने वाली नर्सो की अहम भूमिका के सम्मान के लिए लोगों ने तालियां-थालियां बजाई। दूसरी ओर धरातल पर उनका उत्पीड़न ही हो रहा है। ज्यादा काम और तनख्वाह कम, यह वाकई दुर्भाग्यपूर्ण हालात है।

कोरोना महामारी ने मेहनताने से अध्कि काम करने वाली नर्सों की समस्या को सामने रखा है। नर्सो को अस्पतालों की सिस्टम की उदासीनता, वेतन संरचना का उनके प्रशिक्षण के समान न होना और डाक्टरों के साथ अधिकार की लड़ाई जैसे मसलों से जूझना पड़ता है। साथ ही अग्रिम मोर्च पर काम करने से उनके सामने कई चुनौतियां भी खड़ी हैं।

कई बड़े निजी अस्पतालों में पीपीई व्यक्तिगत सुरक्षा लिबास पहनकर कोविड की 8 घंटे की ड्यूटी करनी होती है, जो बहुत लंबी है। उस दिन दूसरा पीपीई सूट देने से से मना किया जाता है, अब चाहे पहले वाला पीपीई सूट अनुपयोगी हो जायें। कोरोना काल में उनको लगातार 12 घंटे काम करना पड़ा। लेकिन कोई कोविड भत्ता नहीं दिया गया। कोविड पाजिटिव नर्सों के लिए विशेष अवकाश नहीं दिया गया। ये किस्से देश भर की नर्सों की दुर्दशा को बयां करती हैं। देश में नर्सों के सबसे बड़े और सबसे पुराने संगठनों में शुमार- ट्रेंड नर्सेज एसोसिएशन आफ इंडिया टीएनएआई के अनुमान के मुताबिक कोरोना महामारी की शुरुआत से अब तक 50 से अधिक नर्सें कोविड के कारण जान गंवा चुकी हैं।

काम की अनुचित स्थितियों और रोजगार की परिपाटी ने उनका जीवन नरक बना दिया है। कोविड-19 से ज्यादा प्रभावित रहने वाले शहरों के अस्पताल मरीजों से भर चुके हैं, जिसके परिणामस्वरूप नर्सों के काम की अवधि ज्यादा लंबी, मुश्किल तथा अधिक खतरनाक हो गई है। पुणे स्थित सपोर्ट फार एडवोकेसी ऐंड ट्रेनिंग टू हेल्थ इनिशिएटिव्स साथी ने महाराष्ट्र में नर्सों के कई संगठनों की मदद से 367 नर्सों पर किए गए सर्वेक्षण के परिणाम जारी किए। 

सर्वेक्षण में 76 प्रतिशत नर्सों ने अत्यधिक काम किए जाने की जानकारी दी और 65 प्रतिशत नर्सों ने कहा कि इस अवधि के दौरान वे छुट्टियां मंजूर नहीं करा पाईं तथा 17.4 प्रतिशत नर्सों ने दो पालियों में काम करने की जानकारी दी। कोविड भत्ता तो दूर की बात है, कई निजी अस्पतालों ने तो इस दौरान नर्सों के वेतन में 30 फीसदी से ज्यादा तक की कटौती कर दी।

निजी अस्पतालों में अनुचित वेतन संरचना नर्सों के लिए पुराना मसला रहा है। टीएनएआई ने निजी अस्पतालों में नर्सों के लिए ज्यादा वेतन की खातिर वर्ष 2016 में सर्वाेच्च न्यायालय में याचिका दायर की थी जिसने तब सरकार को नर्सों का वेतन ढांचा दुरुस्त करने का निर्देश दिया था। चूंकि स्वास्थ्य राज्य का विषय है, इसलिए केवल केरल, दिल्ली और कर्नाटक ने इस पर ध्यान दिया और उसके बाद से इस पर केवल केरल में आंशिक अनुपालन किया गया है।

अस्पतालों ने इस वैश्विक महामारी के दौरान वेतन वितरण में देरी की है। और जब भी उन्होंने कार्यस्थल के मसलों को उठाया, खास तौर पर निजी अस्पालों के खिलाफ तो उन्हें परेशान किया गया। निजी अस्पतालों और नर्सिंग होम में काम करने वाली नर्सों के लिए असुरक्षा का एक अन्य कारण वह मुश्किल जिससे कुछ नर्सों को दोचार होना पड़ता है। अगर ड्यूटी के दौरान उनकी मृत्यु हो गई तो उनके शोकाकुल परिवारों को मुआवजे की लड़ाई का सामना करना पड़ा है। 

इनमें वे नर्सें शामिल नहीं है जो जनरल वार्डों, गैर-कोविड अस्पतालों और क्लीनिकों में संक्रमित हुई है। दिल्ली में कोविड से मरने वाली पहली नर्स 46 वर्षीय अंबिका पीके समेत अन्य नर्सों के परिवारों को 50 लाख रुपये के उस मुआवजे के लिए अंतहीन प्रतीक्षा का सामना करना पड़ रहा है जिसके लिए सरकार ने इस वैश्विक महामारी की शुरुआत में वादा किया था।

केरल स्थित मुख्यालय वाले यूनाइटेड नर्सेज एसोसिएशन के अध्यक्ष राज्य जिबिन टीसी कहते हैं कि नर्सें थक गई हैं और निरुत्साहित हो चुकी हैं। इस महामारी के दौरान तकरीबन 800 नर्सें देश छोड़कर ब्रिटेन और यूएई जैसे उन देशों में चली गई हैं जहां नर्सों के साथ ज्यादा अच्छा व्यवहार किया जाता है।


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