सोमवार, 8 फ़रवरी 2021

चमोली का जलप्रलय हिमालय पर मंडराते महासंकट का प्रतीक

 चमोली का जलप्रलय हिमालय पर मंडराते महासंकट का प्रतीक



हिमालयी ग्लेशियर्स को मानिटर करने पर ध्यान देने की जरूरत

प0नि0ब्यूरो

देहरादून। प्राकृतिक खूबसूरती के लिए प्रसिद्व उत्तराखंड के चमोली में अचानक रौद्र हुई धौलीगंगा अपने बहाव के साथ साथ सामने आई हर चीज को बहा ले गई। माना जा रहा है कि यह जलप्रलय ग्लेशियर के फटने से आई है लेकिन अभी ऐसा कहना जल्दबाजी हो सकता है। लेकिन इतना तो तय है कि चमोली के जलप्रलय की यह तस्वीर हिमालय पर मंडरा रहे संकट का प्रतीक है। 

पहली नजर में भले ही यह जलवायु परिवर्तन की घटना लगती है क्योंकि ग्लोबल वार्मिंग की वजह से ग्लेशियर पिघल रहे हैं। हालांकि इस पर ज्यादा जानकारी के लिए फिलहाल आंकड़े मौजूद नहीं है। हिमालय को लेकर जो आंकड़े मौजूद है उससे जाहिर हो रहा संकट महज फिक्र करने से खत्म नहीं होगा। 

बदलती जलवायु में महासागरों और क्रायोस्फीयर पर एक खास रिपोर्ट में जानकारी दी गई है कि जलवायु परिवर्तन ने प्राकृतिक आपदाओं की संख्या और तीव्रता बदली है। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि कुछ क्षेत्रों में गीली बर्फ वाले हिमस्खलन बढ़ गए हैं जबकि कम ऊंचाई पर बाढ़ का खतरा भी बढ़ गया है। भविष्य में ऐसी घटनाओं की संख्या और तीव्रता बढ़ने के संकेत मिले हैं। 

ज्यादा ग्लोबल वार्मिंग से ज्यादा हिमस्खल का खतरा बढ़ जाता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि हिमस्खलन ढलान पर बर्फ या चट्टान के ऊपर ज्यादा वजन की वजह से होते हैं। हालांकि चमोली की घटना के पीछे ग्लेशियर का फटना है या बादल का फटना, ग्लेशियल झील में आया तूफान या बर्फ में पानी भरने से पैदा हुई फिसलन, इसे लेकर कुछ कहना अभी जल्दबाजी होगी। संभावना है कि पिछले कई हफ्रतों से हो रही बर्फबारी की वजह से कोई हिमचट्टान सरक गई।

चमोली की घटना को जलवायु परिवर्तन के सीधे असर के तौर पर देखा जा सकता है? सिःसंदेह क्योंकि यह घटनाएं जलवायु परिवर्तन से जुड़ी हैं। ग्लेशियरों पर ग्लोबल वार्मिंग के असर पर काफी अध्ययन किया गया है। हाल ही में एक रिपोर्ट में पाया गया है कि हिमालय के हिंदुकुश क्षेत्र में तापमान बढ़ रहा है और वैश्विक तापमान बढ़ने का असर ऊंचाई की वजह से हिमालय पर ज्यादा है। हिंदुकुश हिमालय असेसमेंट रिपोर्ट में आशंका जताई गई थी कि साल 2100 तक अगर वैश्विक उत्सर्जन में कमी नहीं आई तो हिमालय के ग्लेशियर का दो-तिहाई हिस्सा पिघल जाएगा।

हिमालय के ग्लेशियरों पर दुनिया की पर्वत श्रृंखलाओं के ग्लेशियरों की तरह जलवायु परिवर्तन का असर हो रहा है। तिब्बत के पठारी इलाके में तापमान बढ़ने पर हवा में आद्रता ज्यादा होती है जिससे सर्दियों में बर्फ ज्यादा गिरती है। बर्फ के बढ़ते वजन की वजह से सर्दियों में हिमस्खलन का कारण बनती है। वहीं गर्मियों में बरसने वाला पानी दरारों में कैद होकर पिफसलन पैदा करता है और तब हिमस्खलन होता है।

पेरिस समझौते के बाद से भारत सरकार ने ग्लेशियरों पर ज्यादा ध्यान दिया है लेकिन इनके बारे में ऐल्प्स, अलास्का या अंटार्कटिका की तुलना में जानकारी कम है। देश के जलवायु परिवर्तन की ओर प्रतिबद्वता ट्रैक करने वाले वेबसाइट क्लाइमेट ऐक्शन ट्रैकर के मुताबिक मौजूदा नीतियों की मदद से भारत अपने एनडीसी टार्गेट समय से पहले हासिल कर सकता है। पिछले दो साल के बजट में काफी उम्मीदें जगी हैं लेकिन अभी और बेहतर भी किया जा सकता है। 

वैश्विक ग्लोबल वार्मिंग का असर हिमालय पर हो रहा है। हिमालय का क्षेत्र बहुत नाजुक है और जरूरी है कि बहुत ध्यान से इसकी क्षमता का इस्तेमाल किया जाए। जो बदलाव हो रहे हैं उसमें पर्यावरण एक कारण है और दूसरा इंसानी गतिविधियां जो इसमें योगदान दे रही हैं। कुछ भी ऐसा जो वायु प्रदूषण को बढ़ाता हो, उससे जलवायु गर्म होगी और बर्फ, ग्लेशियर, जंगलों, भारी बारिश और भूस्खलन जैसी प्राकृतिक आपदाएं बढ़ेंगी।

हिमालय दुनिया में सबसे कम मानिटर किया जाने वाला क्षेत्र है। इसलिए यहां ग्लेशियर को और ज्यादा मानिटर करने पर ध्यान देने की जरूरत है। इसके लिए ज्यादा संसाधन जुटाने चाहिए। जितना ज्यादा इन्हें स्टडी किया जाएगा, उतना ज्यादा असर हमें पता चलेगा जिससे ऐसी घटनाओं से बचने के लिए नीतियां बनाने में मदद मिलेगी।


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