मंगलवार, 9 फ़रवरी 2021

वन नेशन वन कंपनसेशन की जरूरत

 वन नेशन वन कंपनसेशन की जरूरत



प0नि0ब्यूरो

देहरादून। प्रदेश के चमोली जिले में आई आपदा के बार वहां पर तबाही के मंजर दिखाई दे रहें है। अभी भी सैकड़ों लोग लापता बताये जा रहें है। ऐसे संवेदनशील मौके पर हालांकि यह अच्छा न लगे परन्तु आज कंपनसेशन की बात करनी बेहद जरूरी है। हालांकि ग्लेशियर फटने से आयी आपदा के बाद प्रदेश सरकार ने चार लाख और केन्द्र ने दो-दो लाख रूपये के मुआवजे का ऐलान किया है। लेकिन इसके साथ ही मुआवजे को लेकर बहस भी आगे बढ़नी चाहिये। वक्त आ गया है कि नव नेशन वन कंपनसेशन की ओर भी विचार किया जाये। वरना हो यह रहा है कि कहीं पर लाख-चार लाख का मुआवजा जन हानि होने पर डिक्लेयर होती है तो कही यह रकम बीस हजार में भी सिमट जाती है। आपदा प्रभावित और आपदा से मारे जाने वालों के परिजनों के साथ ऐसा करके सौतलेपन हो जाता है। 

कायदा तो यह बनता है कि देश भर में एक मानक या नियम बनाकर इसे एक समान बनाया जाना चाहिये। केन्द्र सभी आपदा पीड़ितों को एक समान मुआवजा दे और राज्य सरकारें भी इसी तरह एक समान मुआवजा देने को बाध्य होनी चाहिये। ताकि किसी भी आपदा प्रभावित या उसके परिजनों को असमानता का शिकार न होना पड़े। वरना कई दफा देखा गया है कि सरकारें बला टालने के मोड़ में लाख-पचास हजार रूपये का मुआवजा देकर पल्ला झाड़ लेतीं है। तो किसी भी सूरत में स्वीकार्य नहीं होना चाहिये। हालांकि इसी तरह किसी शहादत पर दिए जाने वाले मुआवजे को भी इसी तरह तय किया जा सकता है। ऐसे कायदे नियमों के अभाव में राजनीतिक दल नाजायज लाभ उठाते है।

ऐसा दिल्ली में देखा भी गया कि आत्महत्या करने पर, जो कि कानूनन अपराध की श्रेणी में आता है, वहां की सरकार ने करोड़ रूपये मुआवजे के तौर पर बांट दिया। वास्तव में इस तरह का मुआवजा वितरण बंदरबांट ही कहलायेगा। जब देश में केन्द्र सरकार कई अच्छी पहल को अंजाम दे रही है तो वन नेशन वन कंपनसेशन को क्यों आगे नहीं बढ़ा सकती। इससे एक तय रकम आपदा पीड़ित के परिजनों को मिल पायेगी और मुआवजे के नाम पर होने वाले बंदरबांट पर भी रोक लगेगी। सरकारों को चाहिये कि वह आपदाओं को वर्गीकृत करके तय करे कि किसको कितना मुआवजा दिया जाना है, उसी के अनुरूप वह मुआवजे के तौर पर पीड़ितों की मदद करे।


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