कविताः दुख को पीठ दिखाना क्या!
- चेतन सिंह खड़का
जीवन दुख का सागर
दुख को पीठ दिखाना क्या!
एक दिन तो सच सम्मुख होगा
सच से फिर घबराना क्या!
दुख को पीठ दिखाना क्या!
सुखःदुख तो विचार मात्र है
जो जीवन भर अपने साथ है
इस दुनिया के रंगमंच में
हम ही तो जीवंत पात्र है
जीवन नाटक हम अभिनेता
अभिनय से घबराना क्या!
दुख को पीठ दिखाना क्या!
साथी पल के, जीवन पल का
पल का वंश-घराना है
रिश्ते नाते भी एक पल के
एक दिन सबको मिट जाना है
इक दिन पर्दा उठ जायेगा
पर्दो में छिपाना क्या!
दुख को पीठ दिखाना क्या!
आवाज नहीं, संवाद नहीं
बस मौन रहो विवाद नहीं
संघर्षो के हम योद्वा है
शायद हमको याद नहीं
सच्चाई को निर्भय कहना
चुपकर यों डर जाना क्या!
दुख को पीठ दिखाना क्या!
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