कविताः
आदमी
इस दुनिया में आदमी
सबसे ज्यादा मजबूर है।
कुछ आदत से, कुछ वक्त से,
कुछ हालत से बेशउर है।
इस दुनिया में आदमी
सबसे ज्यादा मजबूर है।।
अपराध करता है
कानून बनाता है।
खामोश रहता है
बातें बनाता है।
कभी राज को खोले
कभी सच को छिपाता है।
लाचार होता है
अपनी चलाता है।
ये दिमाग का कीड़ा है, मशहूर है।
इस दुनिया में आदमी
सबसे ज्यादा मजबूर है।।
जुल्म का प्रतिकार करता
सितम ढ़ाता है।
आदमी होशियार है
उल्लू बनाता है।
स्वार्थ के हिसाब से
रिश्ते लगाता है।
कामयाब होने पर खुद को
भगवान बताता है।
कभी मिले रूतबे की मद में, मगरूर है।
इस दुनिया में आदमी
सबसे ज्यादा मजबूर है।।
भगवान के दरबार में
सिर को झुकायेगा।
कभी हाथ की लकीर को
खुद ही बनायेगा।
जो काम करना हो मुश्किल
वो करके दिखायेगा।
आसान से मुकाम पर
हार जायेगा।
हार न माने, कोशिश करता जरूर है।
इस दुनिया में आदमी
सबसे ज्यादा मजबूर है।।
आदमी को किस्मत से
जब कुछ मिल जायेगा।
आपस में वो भेद करें
आंखें दिखायेगा।
कितने पापड़ बेले
वो सब भूल जायेगा।
अपनी औकात को भूलकर
खुद पे इतरायेगा।
इसलिए आदमी, आदमी से दूर है।
इस दुनिया में आदमी
सबसे ज्यादा मजबूर है।।
- चेतन सिंह खड़का
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