अर्नगल प्रलाप से दूर रहें जिम्मेदार
प0नि0ब्यूरो
देहरादून। जब से तीरथ सिंह रावत प्रदेश के मुखिया के तौर पर आये है, तब से ही सरकार के पूर्व में जिम्मेदार रहे नेता हो या वर्तमान में ओहदों में बैठे नेता, सब के सब इस तरह का बर्ताव कर रहें है जैसे वे अनियंत्रित हो गए हों। जबकि अनुभव का तकाजा तो यह कहता है कि जिम्मेदारों को अर्नगल प्रलापों से दूर रहना चाहिये। अब चाहे वे पूर्व के जिम्मेदार रहें हो या वर्तमान के जिम्मेदार हों। यह गौर करने वाली बात है कि पहले किसी की बात न सुनने वाले भी खामखां की सलाह देने से बाज नहीं आ रहे है। खासकर एक पूर्व मुख्यमंत्री के लिए ऐसा कहा जा रहा है। जो कुर्सी से बेदखल किए जाने के बाद कुछ ज्यादा ही रायशुमारी करने लगे है। जबकि वर्तमान में कोई भी उनको भाव देने को तैयार नहीं नजर आता है।
कुछ ऐसा ही हाल कुछ मंत्री एवं विधायकों का भी है। जो अपने से बयानबाजी पर उतर आते है। कई बार तो ऐसा प्रतीत होता है जैसे यह लोग खामखां राजकाज में दखलअंदाजी कर रहें है। तो क्या यह सभी महानुभाव अपने मुख्यमंत्री को अनाड़ी समझते है? या उनको ऐसा लगता है कि टीएसआर-2 को उनकी सलाह जरूरी है? इन बेवजह की सलाह देने वालों को नहीं भूलना चाहिये कि टीएसआर-2 भी राजनीतिज्ञ है। बरसों बरस से राजनीति कर रहें है। वे भी दीन दुनिया के बारे में उतना ही जानते है जितना कि वे लोग खुद के लिए गलतफहमी पाले बैठे है। वे भी जमीन से उभरे हुए नेता है और इससे पहले भी कई अहम जिम्मेदारियां निभा चुके है। इसलिए उनके लिए भ्रम पालना अच्छी बात नहीं है।
फिर सबसे अहम बात तो यह कि कुछ तो योग्यता होगी, जो उनके आला कमान ने उनको सीएम की कुर्सी पर बैठाया। इसलिए बेहतर होगा कि उनको अपने हिसाब से काम करने दीजिए। क्योंकि आप योग्य होते तो उनकी जगह पर बैठे होते। इसमें कोई दो राय नहीं कि टीएसआर-2 इनसे ज्यादा योग्य है। तभी मुख्यमंत्री की कुर्सी पर काबिज है। फिर उन्होंने कुछ पूछना या जानना भी होगा तो अपने आला कमान से सवाल जवाब कर लेंगे। उनके पास भी सलाहकारों की फौज है। वह किस दिन काम आयेगी! इसलिए प्रदेश की बेहतरी के लिए, पार्टी हित में जरूरी हो जाता है कि ऐसे लोग संयम दिखायें और अर्नगल प्रलाप करने की बजाय कुर्सी का तमाशा देखें।
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