सोमवार, 30 अगस्त 2021

कमजोर नेतृत्व और गलत नीतियों के कारण गैर-भाजपाईयों का घटता प्रभाव

 कमजोर नेतृत्व और गलत नीतियों के कारण गैर-भाजपाईयों का घटता प्रभाव



आगामी लोकसभा चुनाव भाजपा बनाम क्षेत्रीय दल होने की संभावना

प0नि0ब्यूरो

देहरादून। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) देश में लगातार पांव पसार रही है और विपक्ष लगातार बैक फुट पर दिख रहा है। ऐसे में यह सवाल स्वाभाविक है कि क्या प्रमुख विपक्षी दलों का अस्तित्व खत्म हो जायेगा? विपक्षी दलों में एकता की कवायद को इसका प्रमाण माना जा रहा है। कांग्रेस पार्टी द्वारा विपक्षी एकता और वामदलों का अपने धुर विरोधी ममता बनर्जी के साथ भाजपा को हराने के प्रयास में उनका साथ देने का ऐलान प्रमाणित करता है कि आगामी लोकसभा चुनाव के पहले ही विपक्ष को अपने भविष्य की चिंता सता रही है। तभी यह सवाल भी उठ रहा है कि 2024 के लोकसभा चुनाव के बाद कुछ दलों का नामोनिशान समाप्त हो जायेगा?

वामदलों का देश की राजनीति में शुरू से ही दबदबा रहा है। हर राज्य में उनकी पैठ होती थी। पश्चिम बंगाल, केरल और त्रिपुरा को वामदलों का गढ़ माना जाता था। दूसरे राज्यों में भी वाममोर्चा कुछ सीटें जीत ही जाती थी। दो प्रमुख वामदल सीपीएम और सीपीआई देश के राष्ट्रीय दलों की सूची में शामिल हैं। पश्चिम बंगाल में लगातार 34 वर्षों तक शासन, त्रिपुरा में लगातार 15 वर्षों तक सत्ता में रहना, केरल में मजबूत स्थिति और केंद्र की सत्ता में दखल, इस तरह वामदलों की तूती बोलती थी। लेकिन 2009 के लोकसभा चुनाव से वामदलों के पतन का सिलसिला थम नहीं रहा है।

2004 के चुनाव में 4 दलों के वाममोर्चा के लोकसभा में 59 सांसद थे जो घटकर 2009 में 24 हो गए। 2014 में 11 वाममोर्चा के सांसद चुने गए और 2019 में 6 सांसदों का चुना जाना दिखाता है कि वाममोर्चा धीरे-धीरे पतन की ओर बढ़ रहा है। 2011 में पश्चिम बंगाल में 34 वर्षों के बाद सत्ता से बाहर और 2018 में त्रिपुरा में सत्ता का अंत, और अब पश्चिम बंगाल चुनाव में वाममोर्चा एक भी सीट नहीं जीत पाई। बस केरल में वामदलों को जिन्दा रखा हुआ है।

ऐसा ही हाल कांग्रेस पार्टी का भी है। इसके लगातार 10 वर्षों तक केंद्र की सत्ता में रहने के बाद 2014 में भाजपा की नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में सरकार बनी। कांग्रेस 206 सीटों से लुढ़क कर 44 सीटों पर पहुंच गयी और 2019 में 52 पर आ गई। पिछले सात वर्षों में पार्टी की हालत बद से बदतर होती गयी और अब सिर्फ तीन राज्यों में ही कांगेस सत्ता में है- पंजाब, राजस्थान और छत्तीसगढ़। इन तीनांे प्रदेशों में भी गुटबाजी के कारण पार्टी दिन प्रतिदिन कमजोर होती जा रही है।

दिलचस्प है कि कांग्रेस, सीपीएम और सीपीआई की तरह क्षेत्रीय दलों का भाजपा के बढ़ते प्रभाव से अंत नहीं दिख रहा है। जबतक देश में क्षेत्रावाद और जातिवाद का बोलबाला रहेगा तब तक क्षेत्रीय दल टिके रहेंगे। भाजपा को अपने राज्यों में क्षेत्रीय दल ही टक्कर देते नजर आ रहें है। तो क्या कांग्रेस पार्टी या सीपीएम और सीपीआई का अंत हो जाएगा? उनका अस्तित्व अभी खत्म नहीं होगा। कांग्रेस यदि एकजुट हो जाए तो पार्टी के पतन को रोका जा सकता है। लेकिन ऐसा ही चलता रहा तो तो कांग्रेस को और भी बुरे दिनों का सामना करना पड़ सकता है।


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