तेल की कीमतें कम ना कर पाने के लिए आयल बान्ड जिम्मेदार!
मोदी सरकार ने यूपीए सरकार द्वारा जारी आयल बान्ड को जिम्मेदार बताया
प0नि0डेस्क
देहरादून। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा है कि उनकी सरकार पेट्रोल और डीजल के दामों पर इसलिए काबू नहीं कर पा रही है क्योंकि उसके ऊपर यूपीए सरकार द्वारा उठाए गए कुछ कदमों की देनदारी है। वित्त मंत्री वर्ष 2012 में यूपीए सरकार द्वारा जारी किए गए 1.44 लाख करोड़ रुपये के आयल बान्ड की बात कर रही थीं।
दरअसल आयल बान्ड एक तरह का वित्तीय साधन होता जिसके तहत सरकारें तेल वितरण कंपनियों को नकद सब्सिडी देती हैं। यह एक सरकारी प्रतिज्ञापत्र होता है, जिसका इस्तेमाल करके तेल कंपनियां बाजार से पैसे उठा सकती हैं और तेल के दाम घटा सकती हैं। इन प्रतिज्ञापत्रों की जारीकर्ता सरकार होती है जिसकी वजह से इन पर बनने वाला ब्याज भुगतान और इनकी समाप्ति की तारीख के बाद पूरा भुगतान सरकार करती है।
मूल रूप से आयल बान्ड का इस्तेमाल सरकारें बजट में सीधे सब्सिडी देने से बचने के लिए करती हैं। इनका इस्तेमाल कर सरकारों को पेट्रोल, डीजल इत्यादि के दाम कम करने में सहायता मिलती है और वो तात्कालिक रूप से सरकारी खजाने पर बोझ बढ़ने से भी बचा लेती हैं। असल में खर्च का बोझ कम नहीं होता, बस उसे टाला जाता है।
2012 में यूपीए सरकार ने 1.44 लाख करोड़ रुपयों के आयल बान्ड जारी किए थे। इनमें से कुल 3500 करोड़ रुपयों के मूल्य के दो बान्ड की समाप्ति की तारीख 2015 में आई और उस साल एनडीए सरकार को इस राशि का भुगतान करना पड़ा। इसी क्रम में सरकार को 2021-22 वित्त वर्ष में 10,000 करोड़, 2023-24 में 31,150 करोड़, 2024-25 में 52,860 करोड़ और 2025-26 में 36,913 करोड़ रुपयों का भुगतान करना है। इसके अलावा सरकार पिछले 7 सालों से हर साल 10,000 करोड़ रुपए का ब्याज भुगतान भी कर रही है।
आयल बान्ड का भुगतान सरकार को जरूर करना पड़ रहा है लेकिन पेट्रोल, डीजल जैसे तेल उत्पादों पर लगे उत्पाद शुल्क से सरकार की जो कमाई हुई है वो इससे कहीं ज्यादा है। सरकार के अपने आंकड़े कहते हैं कि सिर्फ 2021-22 वित्त वर्ष में ही सरकार ने पेट्रोल और डीजल पर लगे उत्पाद शुल्क से 3.45 लाख करोड़ रुपए कमाए। यानी सरकार पर आयल बान्ड और उन पर ब्याज के भुगतान का जिनका बोझ है, उससे कहीं ज्यादा राशि सरकार उत्पाद शुल्क से कमा रही है।
आयल बान्ड सबसे पहले 2002 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में जारी किए गए थे। अप्रैल 2002 में वाजपेयी सरकार ने पहली बार 9,000 करोड़ रुपयों के आयल बान्ड जारी किए थे। मौजूदा एनडीए सरकार में भी बैंकिंग क्षेत्र के लिए इस तरह के बान्ड जारी किए गए हैं। बैंकों में पैसा डालने के लिए सरकार ने 3.1 लाख करोड़ के रीकैपिटलाइजेशन बान्ड जारी किए हैं जिनका भुगतान 2028 से 2035 के बीच में अगली सरकारों को करना होगा।
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