सोमवार, 11 अक्तूबर 2021

हरीश रावतः न लीपने के न पोतने के

 समाचार समीक्षा

न काहू से दोस्ती न काहू से बैर, सच को सच कहने की हिम्मत

हरीश रावतः न लीपने के न पोतने के

असम, पंजाब और उत्तराखंड़ में डूबा दी कांग्रेस

                                                                              जी हजूर

जगमोहन सेठी

देहरादून। आप यकीन करें या न करें यह कड़वा सच है कि उत्तराखण्ड के चुनाव में इस बार हिंसात्मक घटनाओं के घटित होने से इन्कार नहीं किया जा सकता। यह एक कड़वा सच्चाई है कि चुनाव में आम आदमी पार्टी और हरीश कांग्रेस गुट के बीच एक अन्दरूनी समझौता हो चुका है कि जहां आम आदमी पार्टी का उम्मीदवार जीतने के हालात में होगा वहां कांग्रेस आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार को समर्थन देकर जीतने में मद्द करेगी और जहां कांग्रेसी उम्मीदवार जीताऊं होगा, आम आदमी पार्टी कांग्रेस के पक्ष में समर्थन करके भाजपा के उम्मीदवार को शिकस्त देगी। 

अन्दरूनी चुनावी हालात को देखते हुए कहा जा सकता है कि भाजपा चुनाव तो जीतेगी लेकिन रोते-रोतेे बहुमत पाएगी। नतीजतन सत्ता में तो आएगी लेकिन रो-रो कर सरकार बनाएगी। तो वहीं कांग्रेस में सिर फुटव्वल होने के कारण सत्ता के करीब पहुंचकर भी सत्ता से दूर रहेगी। हरीश रावत पिछली बार दो निर्वाचन क्षेत्रों से हार जाने के कारण अपनी हीन कुण्ठाओं के शिकार हो गये हैं। वे अपने किसी भी राजनीति साथी के बढते कद को देखकर बर्दाश्त नहीं कर पाते हैं। उन्हें नहीं पता चलता कि वह सही कर रहे हैं या नहीं। हरदा पर अब कोई यकीन करने को तैयार नहीं है। नतीजतन उसके पुराने साथी उन्हें छोड़़कर अलग हो गये है। अलग होते-होते उन्होंने हरीश रावत के लाखों रूपयों की दौलत को डकारने के बाद हरदा से मुंह मोड़़ लिया है और कुछ परिपक्व कांग्रेसी नेताओं ने तो चुप्पी साध ली है। 

हम एक है

नतीजतन हरदा अपना विवेक और मानसिक संतुलन खो बैठे। क्या बोल रहे है? उसका क्या अर्थ होगा? हाई कमान क्या बोलेगा? उनकी समझ में नहीं आ रहा। यह भी एक अन्दरूनी हकीकत है कि हरीश रावत यह कभी नहीं बर्दाश्त कर सकते कि उत्तराखण्ड कांग्रेस में कोई चेहरा उनके मुकाबले में उभर कर सामने आए। शुरू से ही हरीश रावत आरै प्रदेश अध्यक्ष रहे प्रीतम सिंह के बीच अच्छे रिश्ते नहीं रहे हैं और दोनों  एक दूसरे को फूटी आंख नहीं सुहाते। अपनी राजनीतिक रंजिश निकालने को हरदा किसी भी सीमा तक जा सकते है। हरीश रावत का यह दुर्गुण कहिये या फिर बर्दाश्त न कर पाने की कुंठा, उनके मानसिक संतुलन को सही रखने के लिये कांग्रेस हाई कमान ने उन्हें उत्तराखण्ड निर्वाचन समिति का अध्यक्ष मनोनीत किया, इसके बावजूद अपनी कुण्ठा वह शान्त नहीं कर पा रहे है।

प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गणेश गोदियाल जो हरीश रावत के चहेत दुलारे रहे हैं। उनकी बदौलत वह अध्यक्ष बने। यह माना जा रहा था कि गणेश गोदियाल के माई-बाप हरीश रावत ही हैं। उनके अलावा कांग्रेस में उनका कोई समर्थक नहीं है लेकिन अचानक गणेश गोदियाल और हरीश रावत में उस वक्त ठन गयी जब हरीश रावत ने प्रदेश कांग्रेस कमेटी द्वारा गणेश गोदियाल के नेतृत्व में लिये गये फैसले को हरीश रावत ने ठुकरा दिया और अपने राजपुर स्थित आवास पर आयोजित समारोह में उसी फैसले को लागू कर दिया। इस समारोह में  प्रदेश कांग्रेस कमेटी और कांग्रेसजनों को नहीं बुलाया गया। शायद हरीश रावत ने यह बताने की कोशिश करी की वह उत्तराखण्ड कांग्रेस के बेताज बादशाह है। बकौल गणेश गोदियाल उनके नेतृृत्व में लिये गये फैसले को कांग्रेस भवन से ही लागू होना था। 

इस समारोह में कांग्रेसी कार्यकर्ताओं ने बढ़चढ़ कर हिस्सा लेना था, लेकिन हरीश रावत ने तानाशाही दिखाते हुये अपने आवास से ही गणेश गोदियाल के नेतृत्व में लिये गये फैसले को लागू कर दिया। हरीश रावत की ऐसी बचकाना हरकतें पहले भी कई बार पार्टी के लिये परेशानी का कारण बन चुकी है। जिस तौर तरीके से हरीश रावत ने भाजपा के कर्मठ नेता आर्येन्द्र शर्मा को नीचा दिखाने के लिये अपनी मुंहबोली बहन राजपुर क्षेत्र की प्रभावशाली किन्नर रजनी रावत को उकसाकर सहसपुर में सम्मेलन का आगाज कराया और हाई कमान को यह दिखाने की कोशिश की कि किन्नर समाज के कांग्रेसी विचारधारा के लोग उनके साथ है। 

गौरतलब है कि किन्नर रजनी रावत राजनीतिक रूप से महत्वकांक्षी होने के कारण हरीश रावत, रजनी रावत को अपनी बहन बनाकर अक्सर चुनाव में अपने विरोधियों के खिलाफ इस्तेमाल करते हैं। मूल कांग्रेसी नेता न होकर अपराधिक नेताओं के जमावड़े को इस्तेमाल करते हुए दिल्ली में बैठे नेताओं को यह दिखाने का प्रयास किया गया है कि उत्तराखण्ड के कांग्रेसी नेता अभी भी उनके साथ जुड़े हुए है। शायद इसलिए पंजाब कांग्रेस को विवादित बनाने के बाद हरीश रावत ने जिस तौर तरीके से सोनिया गांधी के लिए अपील की है कि सोनिया गांधी की इस तकलीफ की घड़ी में सभी को एकजुट होकर उनके साथ खड़ा होना चाहिये, लेकिन उनकी इस अपील का कोई खास असर नहीं हुआ। 

हरीश रावत ने पिछले चुनाव में प्रदेश अध्यक्ष किशोर उपाध्याय को उनके निर्वाचन क्षेत्र टिहरी से चुनाव न लड़वाकर अपनी राजनीतिक खुंदक निकालने के लिये सहसपुर निर्वाचन क्षेत्र से अधिकृत कांग्रेसी उम्मीदवार आर्येन्द्र शर्मा के खिलाफ किशारे उपाध्याय को चुनाव लड़वाया और दबाव डाला कि किसी भी हालत में उन्हें चुनाव जीतने नही देना चाहिये। नतीजतन दोनों ही उम्मीदवार हार गये और बाद मंे किशोर उपाध्याय और हरीश रावत में भी ठन गयी। नतीजतन प्रदेश अध्यक्ष किशोर उपाध्याय न घर के रहे न घाट के। तो दूसरी तरफ हरीश रावत भी दो निर्वाचन क्षेत्रों से एक साथ चुनाव लड़ने के बावजूद दोनों ही क्षेत्रों से पराजित हो गये और मानसिक रूप से हरीश रावत को राजनीतिक झटका लगा। हरीश रावत की इस नापाक हरकत न जाने कैसे दिल्ली मंे बेठै राहुल गांधी ने बर्दाश्त कर लिया कि हरीश रावत ने अपनी मर्जी से प्रदेश कांग्रेस के फैसले को पलट दिया। उनकी इस हरकत से कांग्रेस के अन्दर दिल्ली हाई कमान से लेकर उत्तराखण्ड तक हलचल शुरू हो गयी। 

कांग्रेस के दिग्गज लोगों का मानना है कि हरीश रावत ने ऐसी हरकत जानबूझ कर की है ताकि वह दिल्ली में बैठी त्रिमूर्ति गांधी परिवार से अपना बदला ले सके। वरिष्ठ कांग्रेसी नेताओं का यह मानना है कि हरीश रावत किसी भी हालत में अपने विरोधी को नहीं भुलते और उन्हें सबक सिखाने के लिये मौके की तलाश में रहते है। वरिष्ठ कांग्रेसी नेताओं का कहना है कि जब विजय बहुगुणा को मुख्यमंत्री बनाने के लिये गांधी परिवार ने हामी भर दी जिससे हरीश रावत मुख्यमंत्री बनते-बनते रह गये। हरीश रावत इस झटके को आज तक नहीं भूल पाये है और न ही विजय बहुगुणा को मुख्यमंत्री के पद पर चैन से बैठने दिया। 

राजनीतिक खुंदक निकालने के लिये वह किसी भी सीमा तक जा सकते है। इसके कांग्रेस इतिहास में दर्जनों जीते जागते उदाहरण हैं। असम, पंजाब और उत्तराखण्ड में  हरीश रावत की इन हरकतों ने कांग्रेस को मौत की कगार पर लाकर खडा़ कर दिया है। गौरतलब है कि कांग्रेस कमेटी ने किशोर उपाध्याय जो प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष रह चुके है, शुरूआत में हरीश रावत के करीबी विश्वास पात्रों में रहे हैं, यह भी कहा जाता है कि प्रीतम सिंह अपने अध्यक्ष के कार्यकाल में  दिल्ली हाई कमान से हरीश रावत की शिकायतें करते आए हैं। नतीजतन दिल्ली में बैठे हाई कमान के नेताओं ने फैसला ले लिया कि हरीश रावत को असम कांग्रेस का प्रभारी बनाकर भेज दिया जाए। इसके बावजूद हरीश रावत असम कांग्रेस को सम्भालने में कामयाब नहीं हो सके। जिसके बाद हाई कमान ने पंजाब कांग्रेस का प्रभारी बनाकर उन्हें पंजाब भेज दिया लेकिन यहां भी उन्होंने अपने खुराफाती सोच के कारण पंजाब कांग्रेस में  गुटबाजी को उकसाकर कांग्रेस पार्टी को अपनी अंतिम सांसों तक पहुंचा दिया। कुछ नेताओं का तो यह कहना है कि हरीश रावत शुरू से ही अपनी खुराफाती सोच के लिये जाने पहचाने जाते है।

अन्दरूनी सच यह है कि वह किसी न किसी तौर तरीके से अपने लड़के को राजनीतिक रूप से स्थापित करना चाहते है लेकिन अपने अस्थिर विचारों के कारण खुद ही अपने बेटे की तरक्की में बाधक बने हुये। जो लोग आर्येन्द्र शर्मा का विरोध कर रहे है उनमें से एक हाल ही में जेल से छूट कर आया कैदी है जिसको समाचार पत्रों में कांग्रेसी नेता दिखाया गया है जबकि एक अन्तरजातीय जमीनों की खरीद फरोख्त करने वाले दम्पती को कांग्रेसी नेता दिखाते हुए समाचार प्रकाशित कराया गया। हरीश रावत चाहते थे कि किसी तरह से उत्तराखण्ड में उनका परचम लहराये लेकिन ऐसा हो नही सका। हरीश रावत को अपने ही घर में जबरस्त विरोध झेलना पड़ रहा है तो दूसरी तरफ सोनिया गांधी परिवार ने अपनी आंखो पर पट्टी बांधकर हरीश रावत की पार्टी विरोधी गतिविधियों को नजरअंदाज किया हुआ है।

एक वक्त था जब हरीश रावत उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री बनने के लिये अपना दबाव दस जनपथ पर बनाने के लिये गढ़वाल और कुमाऊं के कार्यकर्ताओं को दिल्ली में बुलाकर अपनी ताकत को दिखाना चाहते थे लेकिन इसके बावजूद विजय बहुगुणा को मुख्यमंत्री बनाया गया। वर्तमान कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष गणेश गोदियाल, पूर्व कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष किशोर उपाध्याय, प्रीतम सिंह के खिलाफ हरदा द्वारा पर्दे के पीछे रहकर राजनीति करने के कारण कांग्रेसियों में भारी गुस्सा है। लोग अब खुलकर कहने लगे है कि हरदा भाजपा सरकार के तेज तर्रार मंत्री हरक सिंह रावत से डरते और घबराते है। दोनों के बीच राज्य बनने के वक्त से ही छत्तीस का आंकड़ा चला आ रहा है। इसमें कोई शक नहीं की जहां हरक सिंह रावत दोस्तों के दोस्त है तो वहीं हरीश रावत अपने दोस्तों और सगे सम्बन्धियों से केवल अपने स्वार्थ के कारण जुड़े हुए है। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि अगले वर्ष विधान सभा चुनाव में हरीश रावत न घर के रहेंगे न घाट के। यह हकीकत लगती है कि हरीश रावत उत्तराखण्ड राज्य में कांग्रेस को शून्य बनाने में भाजपा को अपना पूरा सहयोग अपने तौर तरीके से दते रहे है।

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बूथ कैप्चरिंग के पुराने खिलाड़ी!

                                                                     कथावाचक महाराज

हरक सिंह रावत ही एकमात्र ऐसे मंत्री है जिनकी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ऋषिकेश में मुलाकात के दौरान पीठ थपथपाई और पूछा हरक जी आप कैसे है? और उनका हालचाल पूूछा। पुष्कर सिंह धामी मुख्यमंत्री उत्तराखण्ड दूसरे उत्तराखण्डी नेता रहे जिनकी प्रधानमंत्री मोदी ने मंच से तारीफ की और उनकी सैन्य पारिवारिक पृष्ठभूमि की चर्चा करते हुए उन्हें दूरदृष्टा और ऊर्जावान मुख्यमंत्री बताया। 

मुकदमेबाजी में माहिर कबीना मंत्री सतपाल महाराज और मदन कौशिक प्रदेश अध्यक्ष भाजपा के बीच चल रही मुकदमेबाजी क्या रंग दिखाती है, यह आने वाला वक्त ही बतायेगा। महाराज के राजनीतिक इतिहास को खंगाला जाये तो चुनाव के दौरान बूथ कैप्चरिंग के तथ्य उजागर होते है। संभवतया सतपाल महाराज इस तथ्य के उजागर होने पर परेशान हो लेकिन हकीकत जग जाहिर है। 

दूसरों को उपदेश देना और खुद निवार्चन सम्बन्धी लूटपाट कर अपराध करना सतपाल महाराज जैसी शख्शियत में कथनी करनी का अन्तर बताता है यानी धामी मंत्रीमण्डल के कथावाचक कबीना मंत्री सतपाल महाराज, मुंह में राम बगल में छुरी वाली कहावत को चरितार्थ करते है। मुख्यमंत्री धामी के मंत्रीमण्डल में मुख्यमंत्री पद के महत्वकांक्षी, बूथ कैप्चरिंग करने के माहिर सतपाल महाराज शामिल है। यह भी एक कड़वा सच है कि सतपाल महाराज ने कई बार दिल्ली जाकर हाई कमान से अपनी मुख्यमंत्री बनने की इच्छा जताते हुए पूर्व सीएम त्रिवेन्द्र सिंह रावत की शिकायतें दर्ज करायी थी लेकिन सतपाल महाराज की हरकतों को देखकर उनकी शिकायतों पर गौर नही किया गया। 

इसमें कोई  शक नही है कि वर्तमान मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी स्वभाव से सरल है। सतपाल महाराज की शतरंज की चाल की तरह की हरकतों और साजिशों को नजरअंदाज कर रहे है। बाकी सतपाल महाराज के बारे में कहा जाता है कि आचार संहिता के लागू होते ही पलटी मारकर आम आदमी पार्टी में जाने के लिये आप नेताओं से संपर्क साधे हुए है।

नोटः यदि कोई पक्षकार इस समाचार से सम्बन्धित अपना प्रमाणित स्पष्टीकरण भेजेगा तो हम अपनी टिप्पणी के साथ निष्पक्ष पत्रकारिता के सिद्वान्त पर उसे भी प्रकाशित करेंगे।

सम्पर्क सूत्रः jagmohan_journalist@yahoo.com, jagmohanblitz@gmail.com

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