सोमवार, 14 फ़रवरी 2022

दांव लगाने वाले अब जीत का दावा कर रहे

 ईवीएम में कैद जनता का फैसलाः सबके अपने अपने हिसाब, अपने अपने किताब



दांव लगाने वाले अब जीत का दावा कर रहे

प0नि0ब्यूरो

देहरादून। देश के पांच राज्यों में विधानसभा चुनावों की बयार चल रही है। इनमें से कुछ राज्यों में चुनाव सम्पन्न हो गए है। जनता का फैसला ईवीएम मशीनों में कैद हो गया है। जिसका ऐलान मतगणना के बाद चुनाव आयोग ने करना है। इस बीच इन चुनावों में दांव खेलने वालों ने अब अपनी अपनी जीत का दावा करना शुरू कर दिया है। हालांकि यह तय है कि हर सीट पर केवल एक ने जीतना है। 

कुछ समय से लोग मतदान को लेकर जागरूक हो गए है। इसी के अनुरूप अब इसके लिए सुविधाओं में भी इजाफा हुआ है। पहले जैसी तंगी तो नहीं है, हां सुधर की गुंजाईश अभी भी बनी हुई है। अब भी देखने को मिला कि लोगों के पास वोटर आईडी तो थी लेकिन वोटर लिस्ट में उनका नाम नहीं था। ईवीएम मशीन खराब होने पर लोगों को परेशान होना पड़ा। जबकि इंतजामात सही होते तो यह सामान्य सी बात थी और उपाय भी आसान लेकिन ऐसा हुआ नहीं और लोगों को दिक्कत का सामना करना पड़ा। 

इसके अलावा शिकायतें तो बहुत सी रही होंगी लेकिन इस बार काफी कम समय में सहज तरीके से विधानसभा चुनाव सम्पन्न हो गए। हां, नतीजों के लिए इंतजार जरूर थोड़ा लम्बा है। वैसे भी इंतजार का नाम लो तो वह बेसब्र ही करता है। अगले महीने 10 तारीख को यह इंतजार भी खत्म हो जाना है। तब पता चल जायेगा कि कौन जीता कौन हारा। लेकिन इस दौरान जो लम्बा वख्बा है, वह इसी में जायेगा कि कौन, कैसे और क्यों जीत रहा है। 

बात उत्तराखंड की हो रही है और यह सच है कि मुकाबला कांग्रेस और भाजपा के बीच है। बाकी तो बहुत पीछे रह जाने है। लेकिन आज कह दो तो कोई मानने को तैयार नहीं। छोटी-बड़ी पार्टियों की तो बाद की बात है, इस समय तो निर्दलीय प्रत्याशी भी हार को पचायेगा नहीं। भले ही जनता का फैसला ईवीएम में कैद हो गया हो लेकिन हार और जीत को लेकर सबके अपने अपने हिसाब अपने अपने किताब है। और वे सभी उसी के अनुरूप हार-जीत का विश्लेेषण कर रहें है। उससे इतर नतीजे थोड़े ही उन्हें स्वीकार होगा। वे अपने हिसाब से अपने किए कामों का हवाला देकर जीत का दावा कर रहें है। लेकिन उन्हें भूलना नहीं चाहिये कि काम करने वाला थोड़े ही जीतता है। हार-जीत तो माथे पर लिखे राजयोग का परिणाम होता है। विधता ने लिखा होगा तो लाख रूकावटें आ जाये, बन्दा बनके रहेगा।

और जिसके माथे पर राजयोग नहीं लिखा, उसे सौ बार टिकट मिल जाये, उसने जीतना नहीं है। आप उम्मीदवार हो इसलिए उम्मीदें बांध सकते हो लेकिन जनता को तो प्रदेेश चलाना है, देश चलाना है। अब वह चाहे तो हिजाब के साथ चला ले या फिर संविधन की पोथी के मुताबिक चलने को तत्पर हो। लेकिन जनता इतनी मूर्ख नहीं है, जितना कि राजनीतिज्ञ समझते है। इसलिए हर पांच साल बाद उनकी धड़कनें तेज रहती है कि कहीं जनता पटकनी न दे दे।




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