मंगलवार, 22 फ़रवरी 2022

हरदा को सरकार बनाने की जल्दबाजी!

 शेखचिल्ली का सपना ना साबित हो जाये हरदा के ख्वाब

हरदा को सरकार बनाने की जल्दबाजी!



प0नि0ब्यूरो

देहरादून। चुनाव के बाद लोग बाग 10 मार्च का इंतजार कर रहें है ताकि पता चले कि सरकार किसकी बन रही है। लेकिन कांग्रेस के सेनापति पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत का आत्मविश्वास बढ़ा हुआ है। वे विश्वास के साथ दावा कर रहें है कि कांग्रेस सरकार बनाने जा रही है। बल्कि वे तो इससे भी आगे जाकर मुख्यमंत्री बनने का दावा भी पेश करने लगे है।  

इसके विपरीत भारतीय जनता पार्टी के प्र्रत्याशी अभी तक भीतरघात से उबर नहीं पा रहें है। भाजपा के एक के बाद एक विधानसभा उम्मीदवार भीतरघात का रोना रो रहा है। ऐसे लोगों ने तो जैसे हार मान ली है और अब वे पार्टी के ऐसे विभीषणों पर कारवाई की मांग कर रहें है। ऐसे में जनता तक साफ संदेश जा रहा है। इसको समझना कोई टेड़ी खीर नहीं है। हरदा का आत्मविश्वास और भाजपाईयों का शिकवा शिकायत कुछ कहते है। 

लेकिन इस प्रकार के एक्जिट पोल सरीखे अनुमानों से कुछ हासिल होने वाला नहीं है। 10 मार्च को होने वाली मत गणना सब कुछ खोल कर रख देगी। तो भी सबको पता है कि भाजपा मोदी के नाम पर चुनावी समर में कूदी है। जबकि हरदा को एक अदद सीट तक चुननी भारी पड़ रही थी। 

जब चारों तरफ से उन्हें निराश होना पड़ रहा था तो रामनगर में डेरा जमाना चाहा लेकिन उनके पुराने सिपहसालार ने उनकी उम्मीदों को झटका दे दिया। लेकिन हरदा ने भी अपने स्टाइल में रायता फैलाते हुए जैसे कहा कि हम तो डूबेंगे, तुमको भी डूबा के रहेंगे। रणजीत रावत को भी मनचाही मुराद नहीं लेने दी। सल्ट में ला पटका। खैर जैसे तैसे बात बन गई। हरदा लालकुआं आ गए और रणजीत सल्ट में पटके जा चुके थे। 

लेकिन कहानी अभी खत्म नहीं हुई है। गलती से यदि रणजीत सल्ट से हार गए तो निश्चित तौर पर हरदा पर दोष मढ़ दिया जायेगा। अभी तो हरदा के सिक्के चल रहें है परन्तु यदि लालकुआं हाथ से गया तो सिक्का खोटा पड़ जायेगा। अभी तो हरदा का सुनहरा दिन है। दूसरा बेटा भी राजनीति में कदम रख चुका है। बेटी को टिकट, बेटा उपाध्यक्ष। इसपर खुद के मुख्यमंत्री बनने की ख्वाहिश। लेकिन हर बार अपने कहे से मुकर जाने वाली छवि। कभी खुद प्रदेश का मुखिया बनने की बात और कभी आलाकमान पर फैसला छोड़ना, दूसरों को क्या समझा पाते, खुद असमंजस में है। गलती हरदा की नहीं है। उनको पहले से जानने वाले कहते भी है कि हरदा को जीतने का आदत नहीं है। 

अबकि भाजपायी ही हरदा को मौका दे रहें है कि वो कांग्रेस की सरकार बनने की भविष्यवाणी करें। भाजपा उम्मीदवारों की बेबसी भरे चेहरों और अपनों पर भीतरघात करने की शिकायत करते देखकर भला कौन प्रतिपक्ष अपनी जीत के प्रति मुतमइन नही होगा! तो हरदा भी हो रहें है। चूंकि जीत की आदत नहीं इसलिए सामने जीत देखकर जल्दबाजी कर जा रहें है और बार बार अपने कहे से पलटना पड़ रहा है।

हालांकि वे पुराने राजनीतिज्ञ है इसलिए उनसे संयम बरतने की उम्मीद तो की ही जाती है। लेकिन ऐसा हो नहीं रहा है। तो भी इतना तो तय है कि हरदा की तकदीर अपने चरम पर है। एक राजनीतिज्ञ के लिए इससे सुनहरा दिन हो नहीं सकता। अपना सारा कुनबा सेट कर दिया है। बस जनता जनार्दन की मुहर भर लगनी बाकी है। वह लग गई तो समझो गंगा नहा लिया। वैसे भी उनके सेट करने से कुछ होने वाला नहीं है। इसके लिए तो उनके वंशजों को काबलियत दिखानी होगी। 

हालांकि इसकी संभावना कम ही है। क्योंकि अब तक तो हरदा ही चमकते दिखायी दिए है और उनके आभामंडल के पीछे किसी कोने में उनके वंशज पड़े रहे। यदि उनमें काबलियत होती तो कब के गुदड़ी में लाल प्रदर्शित हो चुके होते। लेकिन दम था नहीं इसलिए नेपथ्य में रहना ही उनका नसीब हो गया है। यह बात कड़वी भले ही हो परन्तु इस हकीकत से कोई इंकार नहीं कर सकता। दूसरी ओर उनके प्रतिद्वंदी भाजपा वाले भी अपना खटराग जप रहें है। ज्यादातर को भीतरघात का डर सता रहा है। हार के डर से दूसरों पर आरोप मढ़ रहें है। 

लेकिन जनाब इस बात को क्यों भूल जाते है कि चुनाव में पार्टी ने उनके चेहरे पर वोट नहीं मांगे। पार्टी ने मोदी को आगे किया, धामी को आगे किया। और इन्हीं दो चेहरे को आगे करके सरकार बनाने का दावा भी किया जा रहा है। ऐसे में कोई हार भी जाये तो दोष उस पर नहीं लगने वाला। लेकिन जो छवि अब उनकी बन गई, वह हारने से भी बदतर है। चुनावी समर में हार-जीत का सिलसिला तो चलता रहता है लेकिन लीडर शिकायत नहींे करता बल्कि समस्या के हल तलाशकर उसका निराकरण करता है।

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