बुधवार, 6 अप्रैल 2022

कविताः प्रश्न - चेतन सिंह खड़का

कविताः प्रश्न




- चेतन सिंह खड़का


मैं अपनी बात 

किसके पास लेकर जाउॅ?

किसको सुनाउॅ?

और कैसे?

अपनी बात किसी को समझाउॅ?


समस्या

कोई इसे सुनेगा भी!

सुनकर समझेगा भी!

या मैं स्वयं किसी को

अपनी बात समझा पाउॅगा!


समाधान

कदाचित एक मार्ग है।

जिससे कि मैं चिंतामुक्त हो सकता हूंॅ।

मुझे नीलकंठ बनना होगा। 

मौन का ब्रहमास्त्र चलाना होगा। 

फिर प्रश्न और समस्या खड़े न होंगे।


परिणाम

और मैं शिवत्व को प्राप्त कर लूंगा। 

शिव का हो जाउॅगा।

और शिव हो जाउॅगा। 


स्पष्टीकरण

अपनी बात स्वयं तक सीमित रखकर मैं

विष ही पी रहा हूंगा। 

अतः नीलकंठ ही कहलाउॅगा।

परिणामस्वरूप शिवत्व के निकठ होकर

शिवत्व प्राप्त कर लूंगा। 

जिससे शिव का हो जाउॅगा।

शिव अर्थात अंधकार का एक अंश

वही एक अंश होकर मैं स्वयं

शिव या अंधकार हो जाउॅगा।

क्योंकि अत्यधिक प्रकाश और अंधकार

दोनों ही ही उपस्थिति में कुछ दिखाई नहीं देता।


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