आचार संहिता की जय
चेतन सिंह खड़का
देहरादून। यह जब जब लगी, इसने खून के आंसू रुलाया। हर बार मुंह में आते ग्रास को छिना। अब तो इसका नाम लेकर दातागण पिण्ड छुड़ा ले रहे हैं।
इस पीड़ा को एक प्रकाशक से बेहतर कौन महसूस कर सकता है। साल दो साल में इसका कहर लघु और छोटे मझोले समाचार पत्रों पर टूटता ही है। हां, बड़े बेनर की इससे यारी है। विज्ञापन हो या पेड़ न्यूज, बड़े बढ़े रहते हैं। लेकिन ले दे के गाज लघु एवं छोटे मझौले अखबारों पे गिरती है।
सरकार बड़ों को ओबलाइज करतीं हैं और बाकी उपेक्षित कर दिए जाते हैं। अब क्यों रोना रोयें, क्योंकि समरथ को नहीं दोष गुसाईं। बंस इतना ही कि आचार संहिता तेरी जय। अब जल्दी से दफा हो। यों पेट में लात मत मार।
शनिवार, 28 सितंबर 2019
आचार संहिता की जय
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