रविवार, 27 अक्तूबर 2019

देवी लक्ष्मी को चढ़ाते हैं खील-बताशे

देवी लक्ष्मी को चढ़ाते हैं खील-बताशे



दीपावली व माता लक्ष्मी से जुड़ी अनेक मान्यताएं व परंपराएं प्रचलित हैं
प0नि0डेस्क
देहरादून।
दीपावली का पर्व धूमधाम से मनाया जाएगा। इस दिन माता लक्ष्मी की पूजा का विशेष महत्व है। दीपावली व माता लक्ष्मी से जुड़ी अनेक मान्यताएं व परंपराएं प्रचलित हैं। ये मान्यताएं व परंपराएं इस प्रकार हैं-
दीपावली धन और ऐश्वर्य की प्राप्ति का त्योहार है। इस दिन मां लक्ष्मी का पूजन कर धन-संपत्ति की कामना की जाती है। खील-बताशे का प्रसाद किसी एक कारण से नहीं बल्कि उसके कई महत्व है। व्यवहारिक, दार्शनिक, और ज्योतिषीय ऐसे सभी कारणों से दीपावली पर खील-बताशे का प्रसाद चढ़ाया जाता है। खील यानी धान मूलतः धान (चावल) का ही एक रूप है। यह चावल से बनती है और उत्तर भारत का प्रमुख अन्न भी है।
दीपावली के पहले ही इसकी फसल तैयार होती है, इस कारण लक्ष्मी को फसल के पहले भाग के रूप में खील-बताशे चढ़ाए जाते हैं। खील बताशों का ज्योतिषीय महत्व भी होता है। दीपावली धन और वैभव की प्राप्ति का त्योहार है और धन-वैभव का दाता शुक्र ग्रह माना गया है। शुक्र ग्रह का प्रमुख धान्य धान ही होता है। शुक्र को प्रसन्न करने के लिए हम लक्ष्मी को खील-बताशे का प्रसाद चढ़ाते हैं।
वैसे लक्ष्मी देवी को बेसन के लड्डू और भगवान गणेश को मोदक का प्रसाद भी चढ़ाया जाता है।
ज्योतिषीय कारणों के साथ ही अगर स्वास्थ्य की दृष्टि से देखा जाए तो भी यह लाभप्रद है। श्राद्ध में सोलह दिन तक खीर-पूरी और अन्य पकवानों के बाद नवरात्रि में नौ दिन उपवास से हमारा हाजमा प्रभावित होता है, खील सुपाच्य होती है। इससे कमजोर हाजमा ठीक होता है। खील बताशों का ज्योतिषीय महत्व भी होता है।


 


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