आधे समाचार चैनलों का स्वामित्व रियल एस्टेट दिग्गजों, नेताओं और उनके सहयोगियों के पास
समाचार चैनलों की गुणवत्ता लगातार नीचे की तरफ गिरती जा रही
प0नि0डेस्क
देहरादून। देश में टीवी की पहुंच 83.6 करोड़ लोगों तक है जबकि इंटरनेट उपभोक्ता 66 करोड़ और समाचारपत्र पाठक 40 करोड़ हैं। आंकड़ों की मानें तो समाचार चैनलों की पहुंच 26 करोड़ से अधिक दर्शकों तक है। साथ ही 5-10 करोड़ लोग आनलाइन समाचार चैनल देखते हैं। वर्ष 2000 में देश में मुश्किल से 10 समाचार चैनल थे, अब यह संख्या 400 के पार हो चुकी है। इनमें से आधे समाचार चैनलों का स्वामित्व रियल एस्टेट दिग्गजों, नेताओं और उनके सहयोगियों के पास है।
यह बाजार विज्ञापन पर निर्भर है। विज्ञापन अधिक दर्शकों वाले चैनलों के खाते में जाते हैं। परिणामस्वरूप बीते दशक में गुणवत्ता लगातार नीचे की तरफ गिरती चली गई। अहम मसलों पर समाचार चैनलों की नादानी एवं नासमझी सापफ नजर आती है।
देश के 4 बड़े हिंदी समाचार चैनलों पर प्रसारित 4 प्रमुख टीवी शो में होने वाली बहसों का विश्लेषण कुछ बयां करता है। इन चैनलों पर प्राइम टाइम में हुई 202 बहसों में से 79 पाकिस्तान पर हमले से संबंधित जबकि 66 बहसों के केंद्र में विपक्षी दल और नेहरू थे। लोगों की जिंदगी भर की बचत जिस पीएमसी बैंक के डूबने से खतरे में पड़ी, उस बारे में महज एक बहस हुई। शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल, पर्यावरण आदि अहम मुद्दों पर कोई भी चर्चा नहीं हुई।
समाचार चैनलों पर परोसा जाने वाला कचरा सोशल मीडिया और व्हाट्सऐप संदशों की शक्ल में विस्तार पाता है। फिर वह ऐसे उत्पाद में बदल जाता है जो हमारे राजनीतिक एवं सामाजिक निर्णयों को बदलने लगता है। तमाम देशवासी अभी इस बात को नहीं समझ पा रहे कि वे बड़ी मुश्किल से हासिल एवं सींचे गए लोकतंत्र की आखिरी निशानियों के खत्म होने का जश्न मना रहे हैं।
वित्तीय रूप से बेअसर समाचार टीवी चैनलों का बाजार महज 3,000-4,000 करोड़ रुपये है जबकि टीवी उद्योग का आकार 74,000 करोड़ रुपये है। इतने चैनलों में से बमुश्किल दो चैनल ही लाभ कमाते हैं। लेकिन समाचार चैनलों ने सामाजिक रूप से उस देश को तबाह कर दिया है जिसकी सारी दुनिया अनेकता में एकता के लिए तारीफ करती रही। ऐसे में क्या किया जा सकता है, दूरदर्शन और आकाशवाणी का संचालन करने वाले प्रसार भारती कार्पाेरेशन को केंद्र से वित्तीय एवं प्रशासनिक तौर पर स्वतंत्र किया जाए।
समाचार प्रसारण में विदेशी निवेश के स्तर को 49 फीसदी से बढ़ाकर 100 फीसदी किया जाए। अधिकांश विदेशी समाचार प्रसारक इसके लिए इच्छुक नहीं नजर आते लेकिन यदि कुछ प्रसारक भारत आते हैं, प्रशिक्षण एवं रिपोर्टिंग में निवेश करते हैं तो अच्छा होगा। समाचार चैनलों के तेजी से बढ़ने का नुकसान यह हुआ है कि जमीनी स्तर पर रिपोर्टिंग खत्म हो चुकी और पूरी व्यवस्था एंकरों के इर्दगिर्द संचालित हो रही है।
चैनलों के स्वामित्व मानकों को बदलना अहम है कि यदि गुणवत्तापरक पत्रकारिता और अन्य दबावों में से चुनने का मौका आता है तो मालिक किसे तरजीह देंगे? सबसे अच्छे एवं मुनाफे में चलने वाले वैश्विक समाचार ब्रांड का स्वामित्व ऐसी कंपनियों के पास है जिसकी कमान ट्रस्ट संभालता है। इस अंतर को स्मरण रखा जाना चाहिये कि यदि भारतीय सिनेमा ने हमारी साफ्रट पावर का प्रतीक बनकर हमें वैश्विक गौरव दिया तो भारतीय समाचार चैनलों ने खराब पत्रकारिता से शर्मसार किया है।