रविवार, 19 अप्रैल 2020

कोरोना से जुड़े टेस्ट

कोरोना से जुड़े टेस्ट



कोरोना संक्रमण की जांच कैसे होती है और पाजिटिव और नेगेटिव रिजल्ट का मतलब क्या!


प0नि0डेस्क


देहरादून। यदि किसी व्यक्ति में फ्रलू के लक्षण मसलन खांसी, बुखार, नाक बहना और सांस लेने की परेशानी हैं तो जरूरी नहीं कि उसका कोरोना टेस्ट हो। कोरोना टेस्ट के लिए डाक्टर संदिग्ध व्यक्ति की यात्रा हिस्ट्री (वह विदेश से आया, या वह कभी ऐसे शख्स के संपर्क में आया है जो कोरोना पाजिटिव निकला हो, उन जगहों को घूमा है या उसके साथ काम करने वाला शख्स कोरोना पाजिटिव निकला हो आदि चीजें) देखता है। इन सभी बातों को जानने के बाद ही कोरोना टेस्ट के लिए कहा जाता है।
एंटीबाडी या रैपिड टेस्टः इसकी रिपोर्ट जल्दी आती है। इस टेस्ट के लिए ब्लड सैंपल लिया जाता है। टेस्ट की पूरी प्रक्रिया में 15 से 20 मिनट लगते हैं, जबकि रिपोर्ट आने में 4 से 5 घंटे। इसे शुरुआती टेस्ट कह सकते हैं। इससे पता चलता है कि शरीर में जो इन्पफेक्शन हुआ है, वह नया है या पुराना। अगर इस टेस्ट का रिजल्ट पाजिटिव आता है तो इसका मतलब है कि उस शख्स में इंपफेक्शन नया है। यह इंफेक्शन कोरोना का ही है या पिफर किसी दूसरी बीमारी का, इसके लिए आरटी एंड पीसीआर टेस्ट किया जाता है। कोरोना टेस्ट के लिए यही टेस्ट सबसे खास है।
आरटी एंड पीसीआर या मालिक्युलर टेस्टः इस टेस्ट को करने में 4 से 5 घंटे का वक्त लगता है और रिपोर्ट आने में कम-से-कम 24 घंटे लग सकते हैं। इसे सीधे इस तरह समझ सकते हैं कि इसमें वायरस के जीन की स्टडी की जाती है कि जो जीन है, वह कोरोना का ही है या किसी और वायरस का। इस टेस्ट में नीचे लिखे तरीकों में से कोई भी अपनाया जा सकता है-
स्वाब टेस्ट- इसमें गले या नाक के अंदर से स्वाब ;रुई या पफाहाद्ध पर श्वास नली से लिक्विड या लार का सैंपल लिया जाता है।
नेजल एस्पिरेट- नाक में एक सलूशन डालने के बाद सैंपल लेकर जांच की जाती है।
ट्रेशल एस्पिरेट- एक पतली ट्यूब ब्रोंकोस्कोप को पफेपफड़ों में डालकर वहां से सैंपल लेकर जांच की जाती है। यह टेस्ट अमूमन उन लोगों पर किया जाता है जो आईसीयू में भर्ती होते हैं।
सप्टम टेस्ट- इसमें फेफड़े में जमा मटीरियल लेकर टेस्ट किया जाता है। कोरोना टेस्ट का यह तरीका भी अच्छा है।
अगर किसी व्यक्ति का टेस्ट कोरोना पाजिटिव आता है, खासकर आरटी एंड पीसीआर तो उसे अस्पताल में भर्ती कर उसका इलाज किया जाता है। इलाज 14 दिन से 1 महीना तक चल सकता है। इलाज के दौरान मरीज में लक्षणों ;सुखी खांसी, बुखार और सांस लेने में परेशानी) के आधार पर फिर से टेस्ट किया जाता है। जब तक जांच पाजिटिव आती है, इलाज और टेस्ट जारी रहता है।
अगर पहला टेस्ट पाजिटिव आ जाए तो दूसरा टेस्ट करने में वैसे तो 24 घंटे का गैप ही काफी है, लेकिन यह टेस्ट महंगा है इसलिए इसे 48 या 72 घंटे यानी 2-3 दिन बाद ही किया जाता है। अगर यह भी पाजिटिव आया तो फिर से 2-3 दिन बाद तीसरा टेस्ट किया जाता है। ध्यान देने वाली बात यह है कि मरीज को अस्पताल से घर भेजने से पहले कम-से-कम 2 टेस्ट नेगेटिव जरूर होने चाहिए।
अगर पहला टेस्ट नेगेटिव आए तो फिर दूसरा टेस्ट कम-से-कम 24 घंटे बाद किया जाता है। दूसरा भी नेगेटिव आ जाए तो मरीज को घर भेज दिया जाता है और यह भी हिदायत दी जाती है कि कम-से-कम 14 दिन सेल्फ क्वारंटीन में रहना होगा।
यानी घर में मास्क लगाकर रहना होगा। अलग बाथरूम इस्तेमाल करना होगा। घर में मौजूद सदस्यों का कोई सामान शेयर नहीं करना होगा। अगर इन 14 दिनों तक सब ठीक रहा, मरीज में कोई भी लक्षण नहीं दिखा तो सबकुछ सामान्य माना जाता है।


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