बुधवार, 13 मई 2020

प्रवासियों की वापसीः ऐतिहात एवं ईमानदारी की जरूरत 

स्थानीय प्रशासन एवं निकायों को बरतनी होगी सावधानी, क्वारंटीन में रखना होगा
प्रवासियों की वापसीः ऐतिहात एवं ईमानदारी की जरूरत 



प0नि0ब्यूरो
देहरादून। प्रदेश में देश विदेश से प्रवासी उत्तराखंडियों की वापसी हो रही है। कोरोना संक्रमण और लाकडाउन के खतरे एवं परेशानी से जूझते हुए लोग बेसब्री से अपने घरों में लौटने को उमड़ पड़े है। अपनों की वापसी हालांकि अच्छी बात है लेकिन आज का समय बड़ा जटिल है। बहुत से लोग इसे खतरनाक भी मानते है। क्योंकि उनको संशय है कि बहुत से प्रवासी अपने साथ कोरोना का संक्रमण भी ला सकते है।
 भले ही कुछ को यह बात नागवार गुजरे लेकिन आज की तारीख में यह परम सत्य है। इसमें बुरा मानने वाली बात भी नहीं है। जो लोग अपने गांव घर से प्रेम करते है, वे कतई नहीं चाहेंगे कि उनके लिए वे कोरोना कैरियर बन जायें। तो इसका उपाय क्या है? निःसंदेह कोरोना महामारी के प्रति जागरूकता एवं इसके बचाव के प्रयासों को ईमानदारी से क्रियान्वित किया जायें तो इससे बचा जा सकता है। और ऐसा करके हम खुद से पहले अपनों को  कोरोना संक्रमण के संभावित खतरे से बचा सकते है।
यानि प्रदेश में प्रवासियों की वापसी के इस वक्त में सभी को ऐतिहात एवं ईमानदारी की जरूरत है ताकि सुई की नोक के बराबर भी महामारी के संक्रमण की गुंजाईश न रहे। क्योंकि इसमें कोई शक नहीं कि इसका कोई इलाज नहीं लेकिन यह भी तथ्य है कि सोशल डिस्टिेंसिंग एवं क्वारंटीन में रह कर इससे बचा जा सकता है। तो कोई भी रिस्क क्यों लिया जाये! यहां पर सबकी सामूहिक जिम्मेदारी बनती है कि वे मिलकर तमाम सर्तकता के उपायों का क्रियान्वयन करें। 
खासकर पहाड़ों में स्थानीय निकायों, ग्राम प्रधानों एवं प्रशासन को विशेष सर्तकता बरतनी चाहिये। अव्वल तो अपने वाले प्रत्येक व्यक्ति के सैंपल लेकर जांच के लिए भेजा जाना चाहिये। हालांकि यह बड़ा कठिन कार्य है। लेकिन यदि व्यक्ति और स्थानीय लोग ईमानदारी से क्वारंटीन में उनको रखे जाने का प्रयास करें तो जोखिम कम हो सकता है। इसके अलावा हमारे पास कोई और विकल्प भी नहीं है।  
इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि इतनी बड़ी संख्या में प्रवासियों की वापसी के साथ साथ कोरोना संक्रमण का खतरा भी बढ़ गया है। इसलिए बेवजह जोखिम लेना सही नहीं है। यहां पर बता दें कि कोरोना ने भले ही हमारे बीच सोशल डिस्टिेंसिंग शब्द को प्रचलन में ला दिया हो परन्तु बिना सामाजिक एका के इसका रोकथाम कर पाना मुमकिन नहीं है। इस लड़ाई को हम तभी जीत सकते है जबकि हमारे बीच का सामाजिक ताना बाना बरकरार रहेगा।  
भले ही हम आज के दौर में हैंडशेक नही कर पा रहे हो और साथ साथ उठना बैठना नही हो पा रहा हो लेकिन कोरोना काल में ऐतिहात एवं ईमानदारी बरत कर हम आपसी स्नेह एवं सौहाद्य को ही प्रकट कर रहें है।


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