गुरुवार, 16 जुलाई 2020

कोरोना वायरस के प्रति जानलेवा लापरवाही

मास्क लगाने और सोशल डिस्टेंसिंग का नहीं हो रहा पालन



कोरोना वायरस के प्रति जानलेवा लापरवाही
प0नि0ब्यूरो
देहरादून। देश में शुरूवाती लाकडाउन के दौरान जिस तरह से लोगों ने दिए गए निर्देशों का पालन करते हुए खुद को घरों में समेट लिया था। वैसा जनून अनलाक पीरियड़ के दौरान दिखाई नहीं दे रहा है। बल्कि अब ज्यादा ऐतिहात बरतने की जरूरत है तो लोग बाग लापरवाही बरत रहें है। बिना मास्क के घूमते और सोशल डिस्टेंसिंग का उल्लंघन करते लोग सरे राह देखे जा सकते है। 
चीन से फैले कोरोना महामारी से जिन देशों ने सबक नहीं लिया उन्होंने इसका घातक अंजाम भी भुगता। लेकिन उनके हस्र से कोई सबक लेता नहीं दिखाई देता है। जबकि अब कई देशों के वैज्ञानिक इसके वैक्सीन के निकट पहुंच चुके है और जल्द ही इसकी वैक्सीन के बाजार में उपलब्ध होने की संभावना प्रबल हो गई है। यानि हमें थोड़ा सा सफर और करना होगा। तब तक इस महामारी की दवा आ जायेगी। 
तब तक के लिए सब को सब्र से काम लेना होगा। खासकर तब जबकि कोरोना महामारी (कोविड-19) का जनक देश चीन खुद चेतावनी दे रहा है कि इसकी दूसरी लहर कहर बरपा सकती है। वहीं जबकि इस बात की भी तस्दीक हो रही है कि  कोरोना वायरस हवा से फैल सकने में सक्षम है। ऐसे में जरूरी हो जाता है कि लोग कोविड-19 के खतरे को देखते हुए ज्यादा सावधानी से काम लें। सुरक्षा के प्रावधनों को अपनाकर कई देशों ने साबित भी किया है कि कोरोना वायरस के कहर से बचा जा सकता है बशर्ते कि हम बचाव के निर्देशों का पालन करें। 
बहुत से देश मसलन ताइवान, जापान और न्यूजीलैंड आदि ने कोरोना के दो मुख्य बचाव उपायों मास्क और सोशल डिस्टिेंसिंग का अनुपालन करते हुए अपने यहां कोविड-19 के संक्रमण को न के बराबर कर लिया है। इसका मतलब यह कि आत्म अनुशासन के द्वारा इस महामारी पर काबू पाया जा सकता है। हालांकि यह सही है कि लंबा समय हो गया और सबके काम धंधे चौपट हो गए है। लेकिन थोड़ा सा इंतजार और, उसके बाद अवश्य ही इस महामारी से निजात मिल जायेगी। लेकिन इसके लिए धैर्य को बरकरार रखना चुनौतीपूर्ण होगा।
इस बात को हमें नहीं भुलना चाहिये कि कोविड-19 सें बचाव के लिए हमारे पास बहुत ज्यादा विकल्प नहीं है। हालांकि हमारे देश में कोरोना संक्रमण से ठीक होने वालों की दर और से ज्यादा है और मृत्यु दर भी न्यूनतम है। ज्यादातर लोग ठीक होकर वापसी कर रहें है। लेकिन चूंकि इस महामारी की दवा उपलब्ध नहीं है इसलिए जीवन के प्रति कोई जोखिम नहीं लिया जा सकता। जाहिर सी बात है कि तब तक हमें ऐतिहात बरना होगा। इसके अलावा चारा भी नहीं है।
संभवतया जागरूकता के अभाव में लोग लापरवाही बरतने लगे है। या फिर भेड़िया आया-भेडिया आया की तर्ज पर लोग उकता गए है इसलिए सुरक्षा उपायों को तवज्जों नहीं दे रहें है। लेकिन इतना तो तय है कि यह एक जानलेवा लापरवाही है। लोग अपनी जान के साथ साथ औरों का जीवन भी संकट में डाल रहें है। आजकल की भागदौड़ भरी जिन्दगी में लाकडाउन ने जो ठहराव ला दिया उसे हम हजम नहीं कर पा रहें है। 
हालांकि खुद भले ही लोग सुरक्षामानकों को नजरअंदाज कर रहें हों लेकिन विपक्ष की तरह सरकारों को कोसना जारी है। ऐसा लगता है कि वे अपनी जिम्मदारी को भी सरकारों की पीठ पर लाद कर खुद को इससे मुक्त करना चाहते है। लेकिन यह किसी भी सूरत में संभव नहीं है। सरकारें तो प्रयास कर रहीं है लेकिन हमें भी नहीं भुलना चाहिये कि जान है तो जहान है।


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