मंगलवार, 21 जुलाई 2020

पर्वतीय क्षेत्रों में रिंगाल के उत्पादन से बढ़ेगा रोजगारः वृक्षमित्र डा0 सोनी

पर्वतीय क्षेत्रों में रिंगाल के उत्पादन से बढ़ेगा रोजगारः वृक्षमित्र डा0 सोनी



संवाददाता
देहरादून। वृक्षमित्र के नाम से प्रसिद्व पर्यावरणविद् डा0 त्रिलोक चंद्र सोनी ने कहा है कि देश को प्लास्टिक मुक्त बनाने में रिंगाल अहम भूमिका निभा सकता है। उन्होंने कहा कि बांस की प्रजाति का वृक्ष रिंगाल उत्तराखंड के जंगलो में बहुतायत पाया जाता है। इसे बोना बांस भी कहा जाता है। जहां बांस की लम्बाई 25-30 मीटर होती है वही रिंगाल 5-8 मीटर लम्बा होता है यह 1000-7000 पिफट की ऊंचाई वाले क्षेत्रों में पाया जाता है। रिंगाल को पानी एवं नमी की जरूरत होती है। 
वृक्षमित्र डा0 त्रिलोक चंद्र सोनी कहते हैं कि रिंगाल पर्वतीय क्षेत्रों के लोगो के लिए ही नही मैदानी क्षेत्रों के लोगो के लिए रोजगार देने वाला बहुउपयोगी पौधा हैं। पहाड़ांे में इसे रिंगाल कहते है और मैदानी क्षेत्रों में इसी प्रजाति को बांस कहते हैं।
डा0 सोनी ने बताया कि हम रिंगाल से बनी अनेक वस्तुआंे का उपयोग करते हैं। जैसे स्कूल में पढ़ाई के लिए कलम, अनाज साफ करने के लिए सूपा, अनाज भरने व तोलने के लिए पाथा, फूलदेई की टोकरी, अनाज भंडार व समान लाने के लिए कंडी, रोटी रखने की टोकरी, झाड़ू, घर की छत बनाने के लिए, इसका उपयोग होता है। उन्होंने कहा कि रिंगाल हमारे जीवन का अभिन्न अंग रहा है। यह पौधा भूस्खलन रोकने में भी कारगर हैं।
उत्तराखंड में पांच प्रकार के रिंगाल पाये जाते हैं। गोलू रिंगाल, देव रिंगाल, थाम रिंगाल, सरारू रिंगाल, भाटपुत्रा रिंगाल आदि। उत्तराखंड में रिंगाल जीवन का अभिन्न अंग होने के साथ साथ यहां की कला को भी प्रदर्शित करता है। प्रदेश के काश्तकार अपनी कला का उपयोग कर विभिन्न प्रकार की दिनचर्या में उपयोग होने वाली वस्तुएं इससे बनाते हैं जैसे लैम्प शेड, गुलदस्ते, हैकर, स्ट्रे, पैन स्टैंड, टेबल, लैम्प आदि।     
डर0 त्रिलोक चंद्र सोनी कहते है कि रिंगाल प्लास्टिक से काफी मजबूत एवं टिकाऊ होता है तथा प्लास्टिक से होने वाले साइड इफेक्ट्स भी रिंगाल से बनी वस्तुओं में नहीं होेते। रिंगाल से बनी वस्तुएं सस्ती होती हैं। डा0 सोनी ने लोगों से अपील की कि इस वर्षा ऋतु में अधिक से अधिक रिंगाल या बांस के पौधों का रोपण करना चाहिए ताकि रिंगाल व बांस से बनी वस्तुओं से अपना रोजगार चला सके।


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