गुरुवार, 10 दिसंबर 2020

सर्जरी पर आयुर्वेद चिकित्सकों का प्रथम एवं जन्म सिद्ध अधिकारः डा0 पसबोला

सर्जरी पर आयुर्वेद चिकित्सकों का प्रथम एवं जन्म सिद्ध अधिकारः डा0 पसबोला



संवाददाता

देहरादून। केन्द्र सरकार के आयुष मंत्रालय द्वारा आयुर्वेद के पोस्ट ग्रेजुएट्स डॉक्टर्स को सर्जरी करने के अधिकार से संबंधित अधिसूचना जारी कर दी गयी है। जिसके अनुसार आयुर्वेद चिकित्सक अब 58 प्रकार की सर्जरी कर सकेंगें। हालांकि इसकी घोषणा वर्ष 2016 में ही कर दी गयी थी। जहां इस फैसले का आयुर्वेद चिकित्सकों द्वारा  स्वागत किया गया है एवं उनमें हर्ष का माहौल है, वहीं अधिकांश एलोपैथिक चिकित्सकों एवं उनकी एसोसिएशन आईएमए को सरकार का यह फैसला नागवार गुजरा है। बिना पूरा प्रकरण जाने समझे ही उनके द्वारा आयुर्वेद विरोधी मानसिकता का इस बार भी प्रदर्शन करते हुए विरोध प्रदर्शन एवं हड़ताल की घोषणा कर दी गयी है।

राजकीय आयुर्वेद एवं यूनानी चिकित्सा सेवा संघ, उत्तराखण्ड (पंजीकृत) के प्रदेश मीडिया प्रभारी डा0 डी0सी0 पसबोला द्वारा भी जहां आयुष मंत्रालय के फैसले का तहेदिल से स्वागत किया गया है, वहीं आईएमए के विरोध एवं हड़ताल के फैसले को आयुर्वेद विरोधी सोच का परिचायक एवं अनुचित बताया है। संघ के प्रान्तीय अध्यक्ष डा0 केएस नपलच्याल ने  आईएमए के फैसले की आलोचना करते हुए दुर्भाग्यपूर्ण एवं संकीर्ण मानसिकता वाला बताया है। उपाध्यक्ष डा0 अजय चमोला द्वारा भी निन्दा की गयी। वहीं इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) द्वारा धरने और हड़ताल संबधी फैसले का नेशनल इंटिग्रेटेड मेडिकल एसोसिएशन (आयुष) ने भी कड़ी आलोचना की है। आयुष एसोसिएशन (छप्ड।) के राष्ट्रीय अध्यक्ष डा0 आरपी पाराशर ने चेतावनी देते हुए कहा कि यदि आईएमए ने अपना अड़ियल रवैया नहीं छोड़ा तो एलौपैथिक डॉक्टर्स का व्यावसायिक बहिष्कार किया जाएगा। उन्होंनें आईएमए के पदाधिकारियों और सदस्यों के दोहरेपन की निंदा करते हुए कहा है कि दिन में जो हास्पिटल्स एवं नर्सिंग होम के मालिक आयुर्वेदिक डॉक्टरों के पास आकर उनके यहां मरीज रेफर करने की प्रार्थना करते हैं, रात को वही आईएमए की मीटिंग में विरोध प्रदर्शन की बात करने लगते हैं, जो कि सही नहीं है।

बड़ी ही हास्यास्पद बात है कि 200 साल से सर्जरी करने वाले 3000 साल से सर्जरी करने वालों का विरोध कर रहे हैं। यहां तक उन की एलोपैथी नाम ही खुद होम्योपैथी के जनक सैमुअल हैनीमैन के द्वारा दिया गया है और 17 वीं शताब्दी तक एलोपैथी की कोई पहचान नहीं थी। जिस समय एलोपैथी का जन्म हुआ था, उससे भी 3000 वर्ष पूर्व आचार्य सुश्रुत, जिन्हें की फादर आफ सर्जरी भी कहा जाता है, ने काशी में सर्जरी का पहला विश्वविद्यालय खोला था। उस समय भी भारत में आंख, कान, नाक, मुख के आपरेशन होते थे। फिर भी एलोपैथ्स द्वारा अपने देश की चिकित्सा पद्धति को हीन भाव से देखना एवं विरोध करना निन्दनीय एवं अक्षम्य है।

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