बुधवार, 30 दिसंबर 2020

नये का स्वागत और पुराने को अलविदा

 एक कठिन दौर से गुजर कर सहज और सरल जीवन की कामना 

नये का स्वागत और


पुराने को अलविदा


संवाददाता

देहरादून। बहुत से लोग कह रहें है कि वर्ष 2020 बहुत खराब गया। उन्हें उम्मीद है कि 2021 कुछ बेहतरी का संकेत लेकर आयेगा। नये साल में 2020 जैसे आपदा और विपदा से मुक्ति मिलेगी। लेकिन वर्ष 2020 इतना भी बुरा दौर नहीं रहा है। इसे हमको पाजीटिव सोच के साथ देखना चाहिये। यह हमारे जीवन का वह दौर है जबकि हमने सबसे ज्यादा समय अपने अपने परिवारों के साथ रह कर बिताया है। 

आज की भागमभाग की जिन्दगी में इतना समय क्या परिवार के साथ व्यातीत करना संभव था? महामारी के नाम पर ही सही पर प्रवास पर रह रहे अपने जब घर वापसी किए तो उनकी हमेशा राह ताकने वाले खुशी से झूम उठे। परदेश में मुसीबत आन पड़ी तो उन्हें भी सहारे के लिए अपने ही याद आये। ऐसा जज्बा पूरे देश ने देखा। भले ही उनके घर-गांव में सहूलियतें न के बराबर रही हों लेकिन अपने घर-गांव जाने की होड़ ने अपनों की उपयोगिता को फिर से साबित किया।  

कैसे खुद तंगहाली में रह रहे अपनों ने प्रवासियों का स्वागत किया, सबने देखा। अपने घर की मिट्टी की सुगन्ध आखिर किसे अच्छी नहीं लगती। यह सब कोविड महामारी न आती तो दिखाई देता। हालांकि इसके पीछे एक बड़ी मानवीय त्रासदी भी झांक रही थी। लेकिन भारतीय परम्परा में कहा जाता है कि अंत भला तो सब भला। इतनी सारी भीषण कठिनाईयों को लोगों ने अपनों के अपनत्व की वजह से पार पाया। हर कोई मानवता की भावना से ओतप्रोत रहा। जिससे जो बन पड़ा, उसी से दूसरों की मदद के लिए लोग आगे आये। 

मानव इतिहास में कोरोना संक्रमण काल बड़ी त्रासदी बेशक हो, लेकिन इसने मानवता के जो रूप दिखाये, वो बेमिसाल है। वरना भौतिकवादी युग में लोग संवेदनहीन होते जा रहे थे। ऐसे में हम से हम ऐसी उम्मीद तो कतई नहीं किया करते। अब भी खतरा तो नहीं टला लेकिन हमारा डर निकल गया है। जिससे लापरवाही निकलकर बाहर आ रही है। एक कठिन दौर से निकल कर सहज और सरल की कामना स्वभाविक है। 

पुराना साल 2020 अलविदा के दहलीज पर खड़ा है और हम 2021 के स्वागत में पलक पावड़े बिछा रहें है। यह विधि का विधान है कि नव आगुंतक का स्वागत हो एवं जाने वाले को विदाई दी जाये। इसलिए तमाम शिकवे गिले एक तरह और सकारात्मक सोच के साथ यह दोनों रश्में निभाई जायें ताकि अनुभव के साथ नये युग की शुरूवात हो और हम अपने मानवीय मूल्यों को स्वयं में आत्मसात करते हुए आगे बढ़े।

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