रविवार, 7 फ़रवरी 2021

एडवेंचर टूरिज्म की संभावनाओं को समेटे दाणेश्वर गुफा

एडवेंचर टूरिज्म की संभावनाओं को समेटे दाणेश्वर गुफा

गंगोलीहाट में केविंग और बर्ड वाचिंग की बेहतरीन साइट

स्टार गेजिंग के लिए भी उपयुक्त



पवन नारायण रावत

गंगोलीहाट। मित्रों.... गंगोलीहाट जहां अपने प्राकृतिक सौन्दर्य और धार्मिक पर्यटन के लिए प्रसिद्व है वहीं एडवेंचर के शौकीनों के लिए यहां अपार संभावनाएं मौजूद हैं। एडवेंचर टूरिज्म और एडवेंचर स्पोर्ट्स दोनों ही क्षेत्रों में पर्यटन और आर्थिकी को नई रफ्रतार देने के लिए गंगोलीहाट के आसपास कई स्थल मौजूद हैं। इन्हीं में से एक प्रमुख दर्शनीय स्थल है- दाणेश्वर गुफा।


                                                                     गुफा के प्रवेश द्वार से 


गंगोलीहाट से लगभग 4 किमी की दूरी पर स्थित सुतार गांव के समीप स्थित है दाणेश्वर गुफा। गंगोलीहाट के मुख्य बाजार से ब्यालपाटा मैदान की तरफ से होकर गुजरने वाले पैदल मार्ग से सुतार गांव तक पहुंचा जा सकता है। इस बेहतरीन पैदल मार्ग को ट्रैकिंग के सुअवसर में तब्दील किया गंगोलीहाट स्थित गंगावली यात्रा टीम ने। 



यात्रा टीम के संयोजक सुरेन्द्र बिष्ट लम्बे समय से गंगोलीहाट एवं आसपास के क्षेत्रों में पर्यटन के लिहाज से उपयुक्त ट्रैकिंग मार्ग पर ट्रैकिंग करते हैं। उनके साथ ट्रैकिंग में शामिल होती है- गंगावली यात्रा टीम। जिसके मुख्य सदस्य हैं- भूपेश, नीरज, शंकर, विनोद, पवन एवं अन्य। उन्होंने हमेशा की तरह पूरी टीम को इकट््ठा किया और अबकी बार रविवार का दिन दाणेश्वर तक ट्रैकिंग के लिए तय किया गया।



यात्रा टीम तय कार्यक्रम के अनुसार सुबह 9 बजे ट्रैकिंग के लिए रवाना हो गयी। सभी ने अपने पिट्ठू बैग तैयार किये, छड़ी ली और हो गयी ट्रैकिंग शुरू। ब्यालपाटा मैदान के नजदीक नीरज ट्रैकिंग टीम में शामिल हुए। जिनके पास रास्ते के लिए कुछ खाद्य सामग्री भी थी, हमेशा की तरह। भूपेश उनके साथ साथ आगे बढ़ रहे थे। दोनों इस ट्रैकिंग मार्ग से परिचित थे। 



उनके पीछे पीछे पैराग्लाइडिंग पायलट शंकर और नौजवान  ब्लागर साथी दीपू उप्रेती राह का आनंद ले लेकर आगे बढ़ रहे थे। इसी जत्थे में मनोज वर्मा और विनोद पंत साथ साथ गपशप करते हुए आगे बढ़े जा रहे थे। पीछे पीछे मैं भी। संयोजक सुरेन्द्र बिष्ट मार्ग में आने वाली वनस्पतियों एवं औषधीय जड़ी बूटियों से टीम को परिचित करवाते जाते। वे कभी सबसे आगे तो कभी सबसे पीछे दिखाई देते।



रास्ते में ही एक स्थान पर हम लोग रास्ता भटककर दूसरे मार्ग पर चल दिये। जहां पर एक शानदार मैदान को देखकर वहां फोटो खिंचाने लगे। दूर से भूपेश पन्त की आवाज सुनाई दी तब पता चला कि हम लोग बातों बातों में दूसरे मार्ग पर आगे बढ़ गए हैं। लेकिन हमारे संयोजक भी पुराने अनुभवी जो ठैरे, झट से एक शार्टकट ढूंढा और जल्द ही हम सब मुख्य धारा में शामिल हो गए। मैदान को देखकर शंकर बेहद प्रसन्न थे। आखिर उन्हें इस क्षेत्र में अपनी पैराग्लाइडिंग के दौरान एक नई लैंडिंग साइट इस मैदान के रूप में नजर आ रही थी। वहीं नीरज ने अपनी चिरपरिचित मुस्कान के साथ बताया कि अपने स्कूली दिनों के दौरान इस मैदान में उन्हें पुलिस ने घेर लिया था। उनकी बात सुनकर भूपेश को भी पुरानी याद ताजा हो आयी। जब वाकई में पुलिस ने उन्हें घेर लिया था और बाकायदा अनाउंसमेन्ट किया कि तुम्हें चारों तरफ से पुलिस ने घेर लिया है। अपने आपको हमारे हवाले कर दो। यह सुनकर टीम के कुछ सदस्य चौकन्ने हो गए फिर तेज ठहाकों के साथ वातावरण को गुंजायमान करने लगे।

लगभग 3 किमी की दूरी तय करने के पश्चात टीम बलीगांव पहुंची। यहां पंत ने एक घर के आंगन में प्राचीन शैली में निर्मित आधुनिक गोल चक्कर घेरा देखा जो उन्हें काफी पसंद आया। गांव के सीढ़ीदार खेतों में उगती हरियाली सबको अपनी तरफ आकर्षित कर रही थी। सुरेन्द्र ने कुछ औषधीय वनस्पतियों की जानकारी दी और टीम फिर से अपने गन्तव्य की तरपफ बढ़ चली।

बलीगांव से लगभग आधे घण्टे की यात्रा कर हम पानी के किनारे किनारे काफी गहराई में स्थित एक गुफा के प्रवेश द्वार तक पहुंच गए। सब समझ गए थे कि उनकी मंजिल सामने है। गुफा के मुख्य द्वार पर लाल रंग से बने गेट के समीप ही लिखा हुआ था- दाणेश्वर गुफा।

गुफा के नजदीक पहुंचते ही सभी जल्दी से अन्दर पहुंच जाने को बेताब थे। हुआ भी ऐसे ही। एक एक कर सब गुफा के अंदर दाखिल हो गए। 



स्थानीय नागरिक एवं गाइड के तौर पर मौजूद दीपक चंद भट्ट ने सभी को गुफा के संबंध में जानकारी उपलब्ध कराई। गुफा के पहले ही तल पर एक किनारे से सूरज की किरणें अंदर आते हुए मनमोहक दृश्य उत्पन्न करती हैं। यहां वाकई बेहद रोमांचक अनुभव होता है। इसी रोमांच में सम्पूर्ण टीम ने काफी समय फोटो सेशन में व्यतीत किया। युवा ब्लागर साथी उप्रेती के लिए यह एक बेहतरीन अनुभव था, सामग्री भी। वहां से आगे चूने से निर्मित गुफा की दीवारें आगे बढ़ने में मददगार साबित होती हैं। उबड़ खाबड़ दीवारों में अंधेरे में आगे बढ़ने में विशेष सावधानी की आवश्यकता है पर यही तो एडवेंचर है। पिफर भला भूपेश कैसे पीछे रहते। वे पलक झपकते ही सधे हुए कदमों से राक क्लाइम्बिंग करते हुए सीधे तीसरी मंजिल पर पहुंच गए।

हम सब उत्सुकतापूर्वक उन्हें देखते ही रहे। भट्ट के निर्देशानुसार दूसरे और तीसरे तल पर भी बेहद साहसिक तरीके से चढ़ते हुए गुफा के दर्शन किये गए। गुपफा अन्दर की तरफ गहराई में फैली हुई है। अन्दर चूने से निर्मित कलाकृतियां आपको बरबस ही अपनी ओर खींच लेती हैं। अत्यधिक अंधेरा होने के कारण यहां से अगले तल पर जाना सम्भव नहीं हो गया पाया। भट्ट ने बताया कि पांच तल वाली गुफा 2014 में प्रकाश में आयी। उससे पहले इसे भालू की मांद समझकर स्थानीय नागरिक कभी इसके अंदर और नजदीक नहीं आते थे। 

गंगोलीहाट को एडवेंचर स्पोर्ट्स के केंद्र के तौर पर विकसित किये जाने की मुहिम में जुटे अंतर्राष्ट्रीय पैराग्लाइडिंग पायलट और गंगावली ट्रैकिंग टीम के सदस्य शंकर का कहना है कि दाणेश्वर गुफा एवं आसपास का स्थल एक बेहतरीन पर्यटन साइट में तब्दील हो सकता है। उनके अनुसार यह केविंग और एडवेंचर टूरिज्म की बेहतरीन साइट है। जैव विविधता होने के कारण यह बर्ड वाचिंग के लिए भी उपयुक्त स्थल है। स्टार गेजिंग के लिए तो क्या कहना। उनका मानना है कि दाणेश्वर गुफा को इसी मायने में पर्यटन के लिए विकसित किया जाना चाहिए। इससे साहसिक पर्यटन के क्षेत्र में यह स्थल अपनी विशिष्ट पहचान स्थापित करेगा एवं स्थानीय स्तर पर रोजगार भी उत्पन्न होंगे। आवश्यकता है तो बस स्थानीय ग्रामीणों की जागरूकता एवं सतर्कता के साथ पहल करने की।



गुफा के अंदर काफी समय बिताने के बाद आखिरकार सब बाहर निकले और कुछ देर आराम करने के उपरान्त टीम वापसी के लिए तैयार थी। वापसी के रास्ते में संयोजक बिष्ट द्वारा हमेशा की तरह गंगोलीहाट स्पेशल चूख तैयार किया गया। जिसका सबने जी भरकर लुफ्रत उठाया। फिर पूरी टीम चल पड़ी वापस अपने ट्रैकिंग मार्ग पर। लगभग शाम 5 बजे वापस ब्यालपाटा फील्ड पहुंची टीम ने कुछ देर विश्राम किया और एक दूसरे को अलविदा कहते हुए सभी सदस्य अपने घर की तरपफ चल पड़े। नीरज की चाय अगली बार पीने के वायदे के साथ।

गंगावली यात्रा टीम की दाणेश्वर गुफा की ट्रैकिंग पूरी हुई। संयोजक सुरेन्द्र बिष्ट के निर्देशन में सम्पन्न इस साहसिक यात्रा की रोमांच टीम के सभी सदस्यों के मन मस्तिष्क पर अंकित हो चुका था। उनके हाथों सनी चूख का स्वाद भी।


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