सीधे श्रमिकों के खाते में जायेगी वित्तीय सहायता
श्रमिकों के बैंक खातों में प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण के माध्यम से वित्तीय सहायता के निर्देश
एजेंसी
नई दिल्ली। हाल ही में जारी एक आदेश में श्रम एवं रोजगार मंत्रालय ने राज्यों के कल्याण बोर्ड ;एसडब्ल्यूबीद्ध को बीओसी श्रमिकों को वस्तुएं और घरेलू सामान वितरित न कर उसके बदले में सीधे श्रमिकों के बैंक खातों में प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (डीबीटी) के माध्यम से वित्तीय सहायता देने के निर्देश दिए हैं। इस संबंध में राज्यों के मुख्य सचिवों, प्रमुख सचिवों (श्रम), श्रम आयुक्तों और राज्य बीओसी श्रमिक कल्याण बोर्ड को आदेश जारी किया गया है। यह आदेश भवन और अन्य निर्माण श्रमिकों की धारा 60 द्वारा दी गई शक्तियों के तहत (रोजगार और सेवा की शर्तों के नियमन) अधिनियम 1996 के तहत दिया गया है। अधिनियम का उद्देश्य प्रत्येक राज्य, केन्द्रशासित प्रदेशों में राज्यों के कल्याण बोर्ड (एसडब्ल्यूबी) के माध्यम से निर्माण श्रमिकों की सुरक्षा, स्वास्थ्य, कल्याण और काम करने की अन्य शर्तों को विनियमित करना है।
कुछ समय पहले श्रम एवं रोजगार मंत्रालय के संज्ञान में ऐसे मामले सामने आए थे, जिसमें कई राज्य कल्याण बोर्ड श्रमिकों को जीवन बीमा, स्वास्थ्य बीमा, विकलांगता कवर, मातृत्व लाभ और वृद्वावस्था पेंशन जैसे जरूरी लाभ देने की जगह लालटेन, कंबल, छाता, उपकरण-किट, बर्तन, साइकिल आदि को खरीदने पर खर्च कर रहे थे। चूंकि कई चरणों में खरीदी प्रक्रिया पूरी होती है, ऐसे में खरीददारी से लेकर वितरण तक में अनियमितता की आशंका रहती है। इसे देखते हुए ही अब डीबीटी का फैसला लिया गया है।
इसी तरह नकदी रूप में पैसों का हस्तांतरण तत्काल आदेश द्वारा पूरी तरह से रोक दिया गया है और श्रमिकों को किसी भी तरह की वित्तीय सहायता डीबीटी के जरिए ही दी जाएगी। साथ ही नया आदेश इस तरह की वस्तुओं के वितरण पर प्रतिबंध लगाता है। आदेश में यह भी कहा गया है कि वस्तुओं का वितरण केवल प्राकृतिक आपदाओं, महामारी, आग, व्यावसायिक खतरों या इसी तरह के अन्य संकटों के कारण होने वाली दुर्घटनाओं को छोड़कर और केवल राज्य सरकार की पूर्व स्वीकृति की मंजूरी पर ही दिया जा सकेगा। यह छूट केवल इसलिए दी गई है कि असाधारण परिस्थितियों में निर्माण श्रमिकों के कल्याण से कोई समझौता नहीं किया जा सकता है।
अधिनियम की धारा 22 (1) राज्यों के कल्याण बोर्ड के कार्यों को बड़े पैमाने पर निर्धारित करती है। उप-वर्गों (ए) से (जी) राज्य कल्याण बोर्ड को पेंशन, समूह बीमा योजना, श्रमिकों के बच्चों को छात्रवृत्ति, चिकित्सा खर्च, मातृत्व लाभ और गृह निर्माण के लिए कर्ज के भुगतान पर उपकर निधि को खर्च करने का अधिकार देती है। उप-खंड (एच) बोर्ड को अपवाद के रूप में निर्धारित की गई ऐसी अन्य कल्याणकारी उपायों और सुविधाओं पर उपकर निधि खर्च करने की अनुमति देता है। यह देखा गया कि कुछ राज्यों के कल्याण बोर्ड ने अधिनियम के इस उप खंड का सहारा लेकर उपकर निधिका मनमाने ढंग से इस्तेमाल किया। इस राशि को निर्माण श्रमिकों के कल्याण के लिए उपयोग करने के बजाय बर्तन और अन्य वस्तुएं खरीदने में कर दिया गया।
आदेश में जोर दिया गया है कि धारा 22 (1) (ए) से (जी) के तहत निर्धारित सामाजिक सुरक्षा कवरेज अधिनियम की धारा 22 (1) (एच) के तहत पंजीकृत निर्माण श्रमिकों को दिए जा रहे अन्य लाभ पहले की तरह बने रहेंगे। अधिनियम की धारा 22 (1) (ए) से (जी) में दी गई इन प्राथमिकता वाले खर्चों को पूरा करने के बाद, उपकर निधि के किसी भी शेष राशि का उपयोग धारा 22 (1) (एच) के तहत दिए गए आदेश के अनुसार अतिरिक्त लाभ देने के लिए किया जा सकता है।
खर्च के तरीके पर नजर रखने के लिए मंत्रालय ने राज्यों के बोर्ड को इस तरह के मदों के विवरण पर एक वार्षिक रिटर्न प्रस्तुत करने के लिए कहा है। जिस पर धारा 22 (1) (ए) से (जी) और धारा 22 (1) (एच) के तहत किए गए खर्च की अलग-अलग पूरी जानकारी होगी।
कानून के अनुसार सार्वजनिक और निजी निर्माण कार्यों पर राज्य सरकारों द्वारा एक पफीसदी की समान दर उपकर वसूला जाता है। निर्माण श्रमिकों के कल्याण के लिए राज्यों के कल्याण बोर्ड द्वारा कोविड-19 के दौरान 2020 के लाकडाउन के समय में अच्छी तरह से इस्तेमाल किया गया। जिसके जरिए निर्माण क्षेत्र के प्रवासी श्रमिकों पर पड़ने वाले प्रतिकूल प्रभाव को कम किया जा सका। इसके लिए श्रम मंत्रालय द्वारा सभी राज्यों को प्रभावित बीओसी श्रमिकों को कल्याण निधि से डीबीटी के माध्यम से वित्तीय सहायता प्रदान करने की सलाह दी गई थी। अधिकांश राज्यों के कल्याण बोर्ड ने पंजीकृत श्रमिकों को 1000 रुपये से 6000 रुपये के बीच सहायता प्रदान की। ताजा आंकड़ों के अनुसार राज्यों के कल्याण बोर्ड द्वारा लगभग 1.83 करोड़ निर्माण श्रमिकों को डीबीटी के माध्यम से उनके बैंक खातों में 5618 करोड़ रुपये वितरित किए गए।
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